योग्य पुत्र प्राप्त प्राप्ति के लिये
स्त्री को हमेशा पुरूष के बायें तरफ़ सोना चाहिये. कुछ देर बांयी करवट लेटने से दायां स्वर और दाहिनी करवट लेटने से बांया स्वर चालू हो जाता है. इस स्थिति में जब पुरूष का दांया स्वर चलने लगे और स्त्री का बांया स्वर चलने लगे तब संभोग करना चाहिये. इस स्थिति में अगर गर्भादान हो गया तो अवश्य ही पुत्र उत्पन्न होगा. स्वर की जांच के लिये नथुनों पर अंगुली रखकर ज्ञात किया जा सकता है.
योग्य कन्या संतान की प्राप्ति के लिये
स्त्री को हमेशा पुरूष के दाहिनी और सोना चाहिये. इस स्थिति मे स्त्री का दाहिना स्वर चलने लगेगा और स्त्री के बायीं तरफ़ लेटे पुरूष का बांया स्वर चलने लगेगा. इस स्थिति में अगर गर्भादान होता है तो निश्चित ही सुयोग्य और गुणवती कन्या संतान प्राप्त होगी.
मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम चार दिवसों में संभोग से पुरूष रुग्णता को प्राप्त होता है. पांचवी रात्रि में संभोग से कन्या, छठी रात्रि में पुत्र, सातवी रात्रि में बंध्या पुत्री, आठवीं रात्रि के संभोग से ऐश्वर्यशाली पुत्र, नवी रात्रि में ऐश्वर्यशालिनी पुत्री, दसवीं रात्रि के संभोग से अति श्रेष्ठ पुत्र, ग्यारहवीं रात्रि के संभोग से सुंदर पर संदिग्ध आचरण वाली कन्या, बारहवीं रात्रि से श्रेष्ठ और गुणवान पुत्र, तेरहवी रात्रि में चिंतावर्धक कन्या एवम चौदहवीं रात्रि के संभोग से सदगुणी और बलवान पुत्र की प्राप्ति होती है. पंद्रहवीं रात्रि के संभोग से लक्ष्मी स्वरूपा पुत्री और सोलहवीं रात्रि के संभोग से गर्भाधान होने पर सर्वज्ञ पुत्र संतान की प्राप्ति होती है. इसके बाद की अक्सर
संतान नही होती.
कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
* दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
* 2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।
* प्राचीन संस्कृत पुस्तक ‘सर्वोदय’ में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
* यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।
* चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।
* कुछ विशिष्ट पंडितों तथा ज्योतिषियों का कहना है कि सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र तथा दक्षिणायन रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्री जन्म लेती है। उनका यह भी कहना है कि मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं। अतः उस दिन के गर्भाधान से पुत्र होने की संभावना बढ़ जाती है। सोमवार और शुक्रवार कन्या दिन हैं, जो पुत्री पैदा करने में सहायक होते हैं। बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं।
* जापान के सुविख्यात चिकित्सक डॉ. कताज का विश्वास है कि जो औरत गर्भ ठहरने के पहले तथा बाद कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थ तथा औषधि का इस्तेमाल करती है, उसे अक्सर लड़का तथा जो मेग्निशियमयुक्त भोज्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडा आदि का इस्तेमाल करती है, उसे लड़की पैदा होती है।
विश्वविख्यात वैज्ञानिक प्रजनन एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. लेण्डरम बी. शैटल्स ने हजारों अमेरिकन दंपतियों पर प्रयोग कर प्रमाणित कर दिया है कि स्त्री में अंडा निकलने के समय से जितना करीब स्त्री को गर्भधारण कराया जाए, उतनी अधिक पुत्र होने की संभावना बनती है। उनका कहना है कि गर्भधारण के समय यदि स्त्री का योनि मार्ग क्षारीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्र तथा अम्लीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्री होने की संभावना बनती है।
स्त्री को हमेशा पुरूष के बायें तरफ़ सोना चाहिये. कुछ देर बांयी करवट लेटने से दायां स्वर और दाहिनी करवट लेटने से बांया स्वर चालू हो जाता है. इस स्थिति में जब पुरूष का दांया स्वर चलने लगे और स्त्री का बांया स्वर चलने लगे तब संभोग करना चाहिये. इस स्थिति में अगर गर्भादान हो गया तो अवश्य ही पुत्र उत्पन्न होगा. स्वर की जांच के लिये नथुनों पर अंगुली रखकर ज्ञात किया जा सकता है.
योग्य कन्या संतान की प्राप्ति के लिये
स्त्री को हमेशा पुरूष के दाहिनी और सोना चाहिये. इस स्थिति मे स्त्री का दाहिना स्वर चलने लगेगा और स्त्री के बायीं तरफ़ लेटे पुरूष का बांया स्वर चलने लगेगा. इस स्थिति में अगर गर्भादान होता है तो निश्चित ही सुयोग्य और गुणवती कन्या संतान प्राप्त होगी.
मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम चार दिवसों में संभोग से पुरूष रुग्णता को प्राप्त होता है. पांचवी रात्रि में संभोग से कन्या, छठी रात्रि में पुत्र, सातवी रात्रि में बंध्या पुत्री, आठवीं रात्रि के संभोग से ऐश्वर्यशाली पुत्र, नवी रात्रि में ऐश्वर्यशालिनी पुत्री, दसवीं रात्रि के संभोग से अति श्रेष्ठ पुत्र, ग्यारहवीं रात्रि के संभोग से सुंदर पर संदिग्ध आचरण वाली कन्या, बारहवीं रात्रि से श्रेष्ठ और गुणवान पुत्र, तेरहवी रात्रि में चिंतावर्धक कन्या एवम चौदहवीं रात्रि के संभोग से सदगुणी और बलवान पुत्र की प्राप्ति होती है. पंद्रहवीं रात्रि के संभोग से लक्ष्मी स्वरूपा पुत्री और सोलहवीं रात्रि के संभोग से गर्भाधान होने पर सर्वज्ञ पुत्र संतान की प्राप्ति होती है. इसके बाद की अक्सर
संतान नही होती.
कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
* दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
* 2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।
* प्राचीन संस्कृत पुस्तक ‘सर्वोदय’ में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
* यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।
* चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।
* कुछ विशिष्ट पंडितों तथा ज्योतिषियों का कहना है कि सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र तथा दक्षिणायन रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्री जन्म लेती है। उनका यह भी कहना है कि मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं। अतः उस दिन के गर्भाधान से पुत्र होने की संभावना बढ़ जाती है। सोमवार और शुक्रवार कन्या दिन हैं, जो पुत्री पैदा करने में सहायक होते हैं। बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं।
* जापान के सुविख्यात चिकित्सक डॉ. कताज का विश्वास है कि जो औरत गर्भ ठहरने के पहले तथा बाद कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थ तथा औषधि का इस्तेमाल करती है, उसे अक्सर लड़का तथा जो मेग्निशियमयुक्त भोज्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडा आदि का इस्तेमाल करती है, उसे लड़की पैदा होती है।
विश्वविख्यात वैज्ञानिक प्रजनन एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. लेण्डरम बी. शैटल्स ने हजारों अमेरिकन दंपतियों पर प्रयोग कर प्रमाणित कर दिया है कि स्त्री में अंडा निकलने के समय से जितना करीब स्त्री को गर्भधारण कराया जाए, उतनी अधिक पुत्र होने की संभावना बनती है। उनका कहना है कि गर्भधारण के समय यदि स्त्री का योनि मार्ग क्षारीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्र तथा अम्लीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्री होने की संभावना बनती है।