सप्तकोटिमहामंत्रा उपमंत्रास्तथैव च ।
श्री विष्णोः कोटि मंत्रश्च कोटि मंत्रः शिवस्य च ।
ते सर्वे तेन जप्ता च यो विभर्ति त्रिपुंड्रकम् ॥
सहस्रं पूर्व्व जातानां सहस्रं च जनिष्यताम् ।
स्ववंशजातान् मर्त्यानां उद्धरेत् यस्त्रिपुंड्रकृत् ।
षडैश्वर्य गुणोपेत्तः प्राप्य दिव्यवपुस्ततः ।
दिव्यं विमानमारुह्य दिव्यस्त्रीशतसेवितः ।
विद्याधराणां सिद्धानां गंधर्वाणां महौजसाम् ।
इंद्रादिलोकपालानां लोकेषु च यथाक्रमम् ॥
भुक्त्त्वा भोगान् सुविपुलं प्रदेशानां पुरेषु च ।
ब्रह्मणः पदमासाद्य तत्र कल्पायुतं वसेत् ॥
विष्णुलोके च रमते आब्रह्मणः शतायुषम् ।
शिवलोके ततः प्राप्य रमते कालमक्षयम् ॥
भावार्थः ललाट पर त्रिपुंड्र धारण करने से विष्णु के महामंत्र व शिव के मंत्र का करोड्रों बार जाप करने का फल मिलता है । हे देवी ! जो मनुष्य त्रिपुंड्र धारण करता है उसकी पिछली व अगली पीढी के हजारों वंशजों का उद्धार होता है । इसके अतिरिक्त उसे सभी प्रकार का ऐश्वर्य मिलता है, वह दिव्य विमान पर रोहण करता है तथा देवांगनाएं उसकी सेवा करती हैं । ऐसा मनुष्य विद्याधर, सिद्धि. गंधर्व, इंद्रादि लोकों का सुख भोगकर १० हजार कल्पों तक (अयुत कल्प तक) ब्रह्मा बनता है । फिर विष्णुलोक में १०० ब्रह्माओं के काल तक निवास कर अक्षय काल तक शिवलोक में निवास करता है ।
श्री विष्णोः कोटि मंत्रश्च कोटि मंत्रः शिवस्य च ।
ते सर्वे तेन जप्ता च यो विभर्ति त्रिपुंड्रकम् ॥
सहस्रं पूर्व्व जातानां सहस्रं च जनिष्यताम् ।
स्ववंशजातान् मर्त्यानां उद्धरेत् यस्त्रिपुंड्रकृत् ।
षडैश्वर्य गुणोपेत्तः प्राप्य दिव्यवपुस्ततः ।
दिव्यं विमानमारुह्य दिव्यस्त्रीशतसेवितः ।
विद्याधराणां सिद्धानां गंधर्वाणां महौजसाम् ।
इंद्रादिलोकपालानां लोकेषु च यथाक्रमम् ॥
भुक्त्त्वा भोगान् सुविपुलं प्रदेशानां पुरेषु च ।
ब्रह्मणः पदमासाद्य तत्र कल्पायुतं वसेत् ॥
विष्णुलोके च रमते आब्रह्मणः शतायुषम् ।
शिवलोके ततः प्राप्य रमते कालमक्षयम् ॥
भावार्थः ललाट पर त्रिपुंड्र धारण करने से विष्णु के महामंत्र व शिव के मंत्र का करोड्रों बार जाप करने का फल मिलता है । हे देवी ! जो मनुष्य त्रिपुंड्र धारण करता है उसकी पिछली व अगली पीढी के हजारों वंशजों का उद्धार होता है । इसके अतिरिक्त उसे सभी प्रकार का ऐश्वर्य मिलता है, वह दिव्य विमान पर रोहण करता है तथा देवांगनाएं उसकी सेवा करती हैं । ऐसा मनुष्य विद्याधर, सिद्धि. गंधर्व, इंद्रादि लोकों का सुख भोगकर १० हजार कल्पों तक (अयुत कल्प तक) ब्रह्मा बनता है । फिर विष्णुलोक में १०० ब्रह्माओं के काल तक निवास कर अक्षय काल तक शिवलोक में निवास करता है ।