सर्वपापक्षयकरं रुद्राक्षं ब्रह्मणीश्वरी ।
अभुक्तो वापि भुक्तो वा नीचा नीचतरोऽपि वा ॥
रुद्राक्षं धारयेत् यस्तु मुच्यते सर्वपातकात् ।
रुद्राक्षधारणं पुण्यं कैवल्यं सदृशं भवेत् ॥
महाव्रतमिदं पुण्यं त्रिकोटितीर्थ संयुतम् ।
सहस्रं धारयेत् यस्तु रुद्राक्षाणां शुचिस्मिते ॥
तं नवंति सुराः सर्वे यथा रुद्रस्तथैव सः ।
अभावे तु सहस्रस्य बाहवोः षोडश षोडशः ॥
भावार्थः हे ब्रह्मणेश्वरी ! रुद्राक्ष सभी दोषों का क्षय करनेवाला है । किसी भी अवस्था में नीच मनुष्य भी रुद्राक्ष धारण करने से दोषमुक्त हो जाता है । यह महत् पुण्य कर्म कहा गया है । रुद्राक्ष धारण करना मोक्ष के समान माना गया है । इसको धारण करने से तीन करोड तीर्थों के भ्रमण का फल मिलता है । हे शुचिस्मिते ! जो मनुष्य १००० रुद्राक्ष धारण करता है, वह देवगणों द्वारा पूजित होता है । उसमें व रुद्र में अभेद भाव रहता है । एक सहस्र रुद्राक्ष धारण न कर सके तो भुजाओं में १६-१६ रुद्राक्ष ही धारण करने चाहिए ।
एकं शिखायां कवचयोर्द्वादश द्वादश क्रमात् ।
द्वात्रिंशत् कंठदेशे तु चत्वारिंशत् शिरे तथा ॥
उभयो कर्णयोः षट् षट् हृदि अष्टोत्तर शतम् ।
यो धारयति रुद्राक्षान् रुद्रवत् स च पूजितः ॥
मुक्ता-प्रवाल-स्फटिकैः सूर्येन्दु-माणि कांचनैः ।
समेतान् धारयेत यस्तु रुद्राक्षान् शिव एव सः ॥
केवलानामपि रुद्राक्षान् यो विभर्त्ति वरानने ।
तं न स्पृशंति पापनि तिमिराणीव भास्करः ॥
भावार्थः एक रुद्राक्ष चोटी में, १२-१२ रुद्राक्ष कवच में, ३२ रुद्राक्ष कंठ में व ४४ रुद्राक्ष मस्तक पर धारण करने चाहिए । छह-छ्ह रुद्राक्ष कानों में, १०८ रुद्राक्ष ह्र्दय पर धारण करनेवाला साधक संसार में रुद्र के समान पूजा जाता है । मुक्ता, प्रवाल, स्फटिक, सूर्यकांतमणि, चंद्रकांतमणि या स्वर्ण के साथ रुद्राक्ष धारण करनेवाला मनुष्य शिव समान हो जाता है । हे सुमुखी ! जो साधक केवल रुद्राक्ष धारण करता है । उसे पाप उसी प्रकार नहीं छू पाता जैसे तिमिर कभी सूर्य को नहीं छू सकता ।
रुद्राक्षमालया जप्तो मंत्रोऽनन्त फलप्रदः ।
यस्यांगे नास्ति रुद्राक्षं एकोऽपि वरवर्णिनी ।
तस्य जन्म निरर्थं स्यात् त्रिपुंड् रहितं यथा ॥
रुद्राक्षं मस्तके बद्धा शिर-स्नानं करोति यः ।
गंगास्नान-फलं तस्य जायते नात्र संशयः ॥
रुद्राक्षं पूजयेत् यस्तु विना तोयाभिषेचनैः ।
यत् फलं शिव पूजायां तदेवाप्नोति निश्चितम् ॥
भावार्थः हे वरवर्णिनी ! रुद्राक्ष की माला पर जाप करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है । यदि कोई एक भी रुद्राक्ष धारण नहीं करता है तो उसका जीवन वैसे ही व्यर्थ है जैसे त्रिपुंड्र रहित मनुष्य का होता है । जो मनुष्यं मस्तक पर रुद्राक्ष बांधकर शीश भाग से स्नान करता है उसे गंगा स्नान का फल मिलता है, इसमें तनिक भी संशय नहीं है । जो मनुष्य जल अभिषेक से रुद्राक्ष का पूजन करता है, उसे शिव-पूजा करने का फल मिलता है, यह भी सत्य है ।
अभुक्तो वापि भुक्तो वा नीचा नीचतरोऽपि वा ॥
रुद्राक्षं धारयेत् यस्तु मुच्यते सर्वपातकात् ।
रुद्राक्षधारणं पुण्यं कैवल्यं सदृशं भवेत् ॥
महाव्रतमिदं पुण्यं त्रिकोटितीर्थ संयुतम् ।
सहस्रं धारयेत् यस्तु रुद्राक्षाणां शुचिस्मिते ॥
तं नवंति सुराः सर्वे यथा रुद्रस्तथैव सः ।
अभावे तु सहस्रस्य बाहवोः षोडश षोडशः ॥
भावार्थः हे ब्रह्मणेश्वरी ! रुद्राक्ष सभी दोषों का क्षय करनेवाला है । किसी भी अवस्था में नीच मनुष्य भी रुद्राक्ष धारण करने से दोषमुक्त हो जाता है । यह महत् पुण्य कर्म कहा गया है । रुद्राक्ष धारण करना मोक्ष के समान माना गया है । इसको धारण करने से तीन करोड तीर्थों के भ्रमण का फल मिलता है । हे शुचिस्मिते ! जो मनुष्य १००० रुद्राक्ष धारण करता है, वह देवगणों द्वारा पूजित होता है । उसमें व रुद्र में अभेद भाव रहता है । एक सहस्र रुद्राक्ष धारण न कर सके तो भुजाओं में १६-१६ रुद्राक्ष ही धारण करने चाहिए ।
एकं शिखायां कवचयोर्द्वादश द्वादश क्रमात् ।
द्वात्रिंशत् कंठदेशे तु चत्वारिंशत् शिरे तथा ॥
उभयो कर्णयोः षट् षट् हृदि अष्टोत्तर शतम् ।
यो धारयति रुद्राक्षान् रुद्रवत् स च पूजितः ॥
मुक्ता-प्रवाल-स्फटिकैः सूर्येन्दु-माणि कांचनैः ।
समेतान् धारयेत यस्तु रुद्राक्षान् शिव एव सः ॥
केवलानामपि रुद्राक्षान् यो विभर्त्ति वरानने ।
तं न स्पृशंति पापनि तिमिराणीव भास्करः ॥
भावार्थः एक रुद्राक्ष चोटी में, १२-१२ रुद्राक्ष कवच में, ३२ रुद्राक्ष कंठ में व ४४ रुद्राक्ष मस्तक पर धारण करने चाहिए । छह-छ्ह रुद्राक्ष कानों में, १०८ रुद्राक्ष ह्र्दय पर धारण करनेवाला साधक संसार में रुद्र के समान पूजा जाता है । मुक्ता, प्रवाल, स्फटिक, सूर्यकांतमणि, चंद्रकांतमणि या स्वर्ण के साथ रुद्राक्ष धारण करनेवाला मनुष्य शिव समान हो जाता है । हे सुमुखी ! जो साधक केवल रुद्राक्ष धारण करता है । उसे पाप उसी प्रकार नहीं छू पाता जैसे तिमिर कभी सूर्य को नहीं छू सकता ।
रुद्राक्षमालया जप्तो मंत्रोऽनन्त फलप्रदः ।
यस्यांगे नास्ति रुद्राक्षं एकोऽपि वरवर्णिनी ।
तस्य जन्म निरर्थं स्यात् त्रिपुंड् रहितं यथा ॥
रुद्राक्षं मस्तके बद्धा शिर-स्नानं करोति यः ।
गंगास्नान-फलं तस्य जायते नात्र संशयः ॥
रुद्राक्षं पूजयेत् यस्तु विना तोयाभिषेचनैः ।
यत् फलं शिव पूजायां तदेवाप्नोति निश्चितम् ॥
भावार्थः हे वरवर्णिनी ! रुद्राक्ष की माला पर जाप करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है । यदि कोई एक भी रुद्राक्ष धारण नहीं करता है तो उसका जीवन वैसे ही व्यर्थ है जैसे त्रिपुंड्र रहित मनुष्य का होता है । जो मनुष्यं मस्तक पर रुद्राक्ष बांधकर शीश भाग से स्नान करता है उसे गंगा स्नान का फल मिलता है, इसमें तनिक भी संशय नहीं है । जो मनुष्य जल अभिषेक से रुद्राक्ष का पूजन करता है, उसे शिव-पूजा करने का फल मिलता है, यह भी सत्य है ।