ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षःप्रचोदयात्।

विष्णुप्रिया लक्ष्मी, शिवप्रिया सती से प्रकट हुई कामेक्षा भगवती आदि शक्ति युगल मूर्ति महिमा अपार, दोनों की प्रीति अमर जाने संसार, दुहाई कामाक्षा की, आय बढ़ा व्यय घटा, दया कर माई। ऊँ नमः विष्णुप्रियाय, ऊँ नमः शिवप्रियाय, ऊँ नमः कामाक्षाय ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा
प्रार्थना
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।
“ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
मोहिनी मोहिनी मैं करा मोहिनी मेरा नाम |राजा मोहा प्रजा मोहा मोहा शहर ग्राम ||त्रिंजन बैठी नार मोहा चोंके बैठी को |स्तर बहतर जिस गली मैं जावा सौ मित्र सौ वैरी को ||वाजे मन्त्र फुरे वाचा |देखा महा मोहिनी तेरे इल्म का तमाशा ||

रुद्राक्ष सभी दोषों का क्षय करनेवाला है

सर्वपापक्षयकरं रुद्राक्षं ब्रह्मणीश्वरी ।
अभुक्तो वापि भुक्तो वा नीचा नीचतरोऽपि वा ॥
रुद्राक्षं धारयेत् यस्तु मुच्यते सर्वपातकात् ।
रुद्राक्षधारणं पुण्यं कैवल्यं सदृशं भवेत् ॥
महाव्रतमिदं पुण्यं त्रिकोटितीर्थ संयुतम् ।
सहस्रं धारयेत् यस्तु रुद्राक्षाणां शुचिस्मिते ॥
तं नवंति सुराः सर्वे यथा रुद्रस्तथैव सः ।
अभावे तु सहस्रस्य बाहवोः षोडश षोडशः ॥

भावार्थः हे ब्रह्मणेश्वरी ! रुद्राक्ष सभी दोषों का क्षय करनेवाला है । किसी भी अवस्था में नीच मनुष्य भी रुद्राक्ष धारण करने से दोषमुक्त हो जाता है । यह महत् पुण्य कर्म कहा गया है । रुद्राक्ष धारण करना मोक्ष के समान माना गया है । इसको धारण करने से तीन करोड तीर्थों के भ्रमण का फल मिलता है । हे शुचिस्मिते ! जो मनुष्य १००० रुद्राक्ष धारण करता है, वह देवगणों द्वारा पूजित होता है । उसमें व रुद्र में अभेद भाव रहता है । एक सहस्र रुद्राक्ष धारण न कर सके तो भुजाओं में १६-१६ रुद्राक्ष ही धारण करने चाहिए ।

एकं शिखायां कवचयोर्द्वादश द्वादश क्रमात् ।
द्वात्रिंशत् कंठदेशे तु चत्वारिंशत् शिरे तथा ॥
उभयो कर्णयोः षट् षट् हृदि अष्टोत्तर शतम् ।
यो धारयति रुद्राक्षान् रुद्रवत् स च पूजितः ॥
मुक्ता-प्रवाल-स्फटिकैः सूर्येन्दु-माणि कांचनैः ।
समेतान् धारयेत यस्तु रुद्राक्षान् शिव एव सः ॥
केवलानामपि रुद्राक्षान् यो विभर्त्ति वरानने ।
तं न स्पृशंति पापनि तिमिराणीव भास्करः ॥

भावार्थः एक रुद्राक्ष चोटी में, १२-१२ रुद्राक्ष कवच में, ३२ रुद्राक्ष कंठ में व ४४ रुद्राक्ष मस्तक पर धारण करने चाहिए । छह-छ्ह रुद्राक्ष कानों में, १०८ रुद्राक्ष ह्र्दय पर धारण करनेवाला साधक संसार में रुद्र के समान पूजा जाता है । मुक्ता, प्रवाल, स्फटिक, सूर्यकांतमणि, चंद्रकांतमणि या स्वर्ण के साथ रुद्राक्ष धारण करनेवाला मनुष्य शिव समान हो जाता है । हे सुमुखी ! जो साधक केवल रुद्राक्ष धारण करता है । उसे पाप उसी प्रकार नहीं छू पाता जैसे तिमिर कभी सूर्य को नहीं छू सकता ।

रुद्राक्षमालया जप्तो मंत्रोऽनन्त फलप्रदः ।
यस्यांगे नास्ति रुद्राक्षं एकोऽपि वरवर्णिनी ।
तस्य जन्म निरर्थं स्यात् त्रिपुंड् रहितं यथा ॥
रुद्राक्षं मस्तके बद्धा शिर-स्नानं करोति यः ।
गंगास्नान-फलं तस्य जायते नात्र संशयः ॥
रुद्राक्षं पूजयेत् यस्तु विना तोयाभिषेचनैः ।
यत् फलं शिव पूजायां तदेवाप्नोति निश्चितम् ॥

भावार्थः हे वरवर्णिनी ! रुद्राक्ष की माला पर जाप करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है । यदि कोई एक भी रुद्राक्ष धारण नहीं करता है तो उसका जीवन वैसे ही व्यर्थ है जैसे त्रिपुंड्र रहित मनुष्य का होता है । जो मनुष्यं मस्तक पर रुद्राक्ष बांधकर शीश भाग से स्नान करता है उसे गंगा स्नान का फल मिलता है, इसमें तनिक भी संशय नहीं है । जो मनुष्य जल अभिषेक से रुद्राक्ष का पूजन करता है, उसे शिव-पूजा करने का फल मिलता है, यह भी सत्य है ।
“ॐ नमो भगवते काम-देवाय श्रीं सर्व-जन-प्रियाय सर्व-जन-सम्मोहनाय ज्वल-ज्वल, प्रज्वल-प्रज्वल, हन-हन, वद-वद, तप-तप,सम्मोहय-सम्मोहय, सर्व-जनं मे वशं कुरु-कुरु स्वाहा।”
बंगाल की रानी करे मेहमानी मुंज बनी के कावा पद्मावती बैठ खावे मावा सत्तर सुलेमान ने हनुमान को रोट लगाया हनुमान ने राह संकट हराया तारा देवी आवे घर हात उठाके देवे वर सतगुरु ने सत्य का शब्द सुनाया सुन योगी आसन लगाया किसके आसन किसके जाप जो बोल्यो सत गुरु आप हर की पौड़ी लक्ष्मी की कौड़ी सुलेमान आवे चढ़ घोड़ी आउ आउ पद्मा वती माई करो भलाई न करे तोह गुरु गोरक्ष की दुहाई.