ओम् जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽतु ते।।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽतु ते।।
मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशोदेहि द्विषो जहि।।
महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रूपां देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशों देहि द्विषो।।
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोभ्दवाम्।।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽतु ते।।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽतु ते।।
मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशोदेहि द्विषो जहि।।
महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रूपां देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशों देहि द्विषो।।
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोभ्दवाम्।।