मंत्र - साधना में दीपक व धूप दीपन आदि प्रकार का निर्धारण



दीपक धूप
साधक को दायीं ओर दीपक और बायीं ओर धूप रखनी चाहिए
 
दीपन आदि प्रकार
दीपन से शांति कर्म , पल्लव से विद्वेषण कर्म , सम्पुट से वशीकरण कर्म , रोधन से बंधन , ग्रंथन से आकर्षण कर्म , विदर्भण से स्तंभन कर्म होता है ये छह भेद प्रत्येक मंत्र में लागू होते हैं उदाहरण के लिए -
मंत्र के प्रारंभ में नाम की स्थापना करें तो '' दीपन '' कहा जाता है
मंत्र के अंत में नाम की स्थापना करें तो '' पल्लव '' कहा जाता है
मंत्र के मध्य भाग में नामोल्लेख करें तो '' रोधन '' कहा जाता है
एक मंत्राक्षर दूसरा नामाक्षर , तीसरा मंत्राक्षर चौथा नामाक्षर ; इस प्रकार संकलित करें तो '' ग्रंथन '' कहा जाता है
मंत्र के दो अक्षरों के बाद एकेक नामाक्षर रखें तो उसे '' संकलित '' कहते हैं
किसी भी प्रयोग को करने से पहले मंत्र का जप किया जाता है , ताकि उस प्रयोग में सफलता प्राप्त हो । ऐसे समय में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक हैं -
स्वच्छ रहना तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए ।
स्थान स्वच्छ व शुद्ध होना चाहिए । प्रतिदिन झाडू - पोंछा लगाकर उस स्थान को साफ रखना चाहिए ।
नीच व्यक्तियों के साथ वार्तालाप व उनका स्पर्श नहीं करना चाहिए । इससे दूषित परमाणुओं से पवित्रता असत्य नहीं बोलना चाहिए , क्रोध नहीं करना चाहिए तथा जहां तक हो सके मौन रहना चाहिए ।
चित्त स्थिर व स्वस्थ रखना चाहिए ।
भोजन सात्विक व हल्का करना चाहिए । वह भी एक ही समय लें तो अच्छा है ।
भोजन व जल ग्रहण करते समय मन को साफ रखना चाहिए ।
हजामत नहीं बनानी चाहिए तथा गरम पानी से स्नान नहीं करना चाहिए ।
किसी को शाप या आशीर्वाद नहीं देना चाहिए ।
किसी भी धर्मशास्त्र व व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए ।
काम , क्रोध , मोह , लोभ , मद , हिंसा , असत्य से जहां तक हो सके , बचना चाहिए ।
निर्भय होना चाहिए । मंत्र , देवता व गुरु की उपासना श्रद्धा - भक्ति तथा विश्वासपूर्वक करनी चाहिए ।