ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षःप्रचोदयात्।

विष्णुप्रिया लक्ष्मी, शिवप्रिया सती से प्रकट हुई कामेक्षा भगवती आदि शक्ति युगल मूर्ति महिमा अपार, दोनों की प्रीति अमर जाने संसार, दुहाई कामाक्षा की, आय बढ़ा व्यय घटा, दया कर माई। ऊँ नमः विष्णुप्रियाय, ऊँ नमः शिवप्रियाय, ऊँ नमः कामाक्षाय ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा
प्रार्थना
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।
“ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
मोहिनी मोहिनी मैं करा मोहिनी मेरा नाम |राजा मोहा प्रजा मोहा मोहा शहर ग्राम ||त्रिंजन बैठी नार मोहा चोंके बैठी को |स्तर बहतर जिस गली मैं जावा सौ मित्र सौ वैरी को ||वाजे मन्त्र फुरे वाचा |देखा महा मोहिनी तेरे इल्म का तमाशा ||

मंत्र - साधना में दीपक व धूप दीपन आदि प्रकार का निर्धारण



दीपक धूप
साधक को दायीं ओर दीपक और बायीं ओर धूप रखनी चाहिए
 
दीपन आदि प्रकार
दीपन से शांति कर्म , पल्लव से विद्वेषण कर्म , सम्पुट से वशीकरण कर्म , रोधन से बंधन , ग्रंथन से आकर्षण कर्म , विदर्भण से स्तंभन कर्म होता है ये छह भेद प्रत्येक मंत्र में लागू होते हैं उदाहरण के लिए -
मंत्र के प्रारंभ में नाम की स्थापना करें तो '' दीपन '' कहा जाता है
मंत्र के अंत में नाम की स्थापना करें तो '' पल्लव '' कहा जाता है
मंत्र के मध्य भाग में नामोल्लेख करें तो '' रोधन '' कहा जाता है
एक मंत्राक्षर दूसरा नामाक्षर , तीसरा मंत्राक्षर चौथा नामाक्षर ; इस प्रकार संकलित करें तो '' ग्रंथन '' कहा जाता है
मंत्र के दो अक्षरों के बाद एकेक नामाक्षर रखें तो उसे '' संकलित '' कहते हैं
किसी भी प्रयोग को करने से पहले मंत्र का जप किया जाता है , ताकि उस प्रयोग में सफलता प्राप्त हो । ऐसे समय में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक हैं -
स्वच्छ रहना तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए ।
स्थान स्वच्छ व शुद्ध होना चाहिए । प्रतिदिन झाडू - पोंछा लगाकर उस स्थान को साफ रखना चाहिए ।
नीच व्यक्तियों के साथ वार्तालाप व उनका स्पर्श नहीं करना चाहिए । इससे दूषित परमाणुओं से पवित्रता असत्य नहीं बोलना चाहिए , क्रोध नहीं करना चाहिए तथा जहां तक हो सके मौन रहना चाहिए ।
चित्त स्थिर व स्वस्थ रखना चाहिए ।
भोजन सात्विक व हल्का करना चाहिए । वह भी एक ही समय लें तो अच्छा है ।
भोजन व जल ग्रहण करते समय मन को साफ रखना चाहिए ।
हजामत नहीं बनानी चाहिए तथा गरम पानी से स्नान नहीं करना चाहिए ।
किसी को शाप या आशीर्वाद नहीं देना चाहिए ।
किसी भी धर्मशास्त्र व व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए ।
काम , क्रोध , मोह , लोभ , मद , हिंसा , असत्य से जहां तक हो सके , बचना चाहिए ।
निर्भय होना चाहिए । मंत्र , देवता व गुरु की उपासना श्रद्धा - भक्ति तथा विश्वासपूर्वक करनी चाहिए ।
 
“ॐ नमो भगवते काम-देवाय श्रीं सर्व-जन-प्रियाय सर्व-जन-सम्मोहनाय ज्वल-ज्वल, प्रज्वल-प्रज्वल, हन-हन, वद-वद, तप-तप,सम्मोहय-सम्मोहय, सर्व-जनं मे वशं कुरु-कुरु स्वाहा।”
बंगाल की रानी करे मेहमानी मुंज बनी के कावा पद्मावती बैठ खावे मावा सत्तर सुलेमान ने हनुमान को रोट लगाया हनुमान ने राह संकट हराया तारा देवी आवे घर हात उठाके देवे वर सतगुरु ने सत्य का शब्द सुनाया सुन योगी आसन लगाया किसके आसन किसके जाप जो बोल्यो सत गुरु आप हर की पौड़ी लक्ष्मी की कौड़ी सुलेमान आवे चढ़ घोड़ी आउ आउ पद्मा वती माई करो भलाई न करे तोह गुरु गोरक्ष की दुहाई.