नियत ध्वनियों के समूह को मंत्र कहते हैं । मंत्र वो विज्ञान या विद्या है ,
जिससे
शक्ति
का उदभव होता है । जहां मंत्र का विधिपूर्वक प्रयोग किया जाता है
, वहां शक्तियों का निवास बना रहता है ।
मंत्र - साधन द्वारा देवी - देवता तक वश में हो जाते हैं और मंत्र - योग की सिद्धि प्राप्त साधक को जगत् का समस्त वैभव सुलभ हो जाता है ( ऐसा माना गया है ) । इस भौतिक प्रधान युग में मानव सुख - सुविधा चाहता है और चमत्कार भी । किन्तु पाखंडियों ने छल व प्रपंच का जाल इस प्रकार फैलाया हुआ है कि केवल अपने साधारण स्वार्थ के लिए एक महान् विद्या के प्रति घृणा व अविश्वास पैदा करवा दिया ।
किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि मंत्रों में शक्ति नहीं है या वे केवल वाग्जाल हैं । मंत्र आज भी विद्यमान हैं । लेकिन चाहिए सिद्ध महापुरुष की छत्रछाया में साधना करने वाला । श्रद्धा ,
भक्ति
व विश्वास से की गई साधना कभी निष्फल नहीं होती ।
मंत्रों से होने वाले लाभ अचानक ही किसी की कृपा से प्राप्त नहीं हो जाते वरन् उनके द्वारा जो वैज्ञानिक प्रक्रिया अपने आप मंत्रवत् होती हैं ,
उससे लाभ होता है । मंत्रों का अपना एक स्वतंत्र विधान है ।
मंत्र
- साधना
में सामान्यतः जो विधि अपनाई जाती है
, उसकी कुछ मूलभूत क्रियाओं का ध्यान रखता नितांत आवश्यक है
, जो निम्न प्रकार से हैं -
स्थान पवित्र ,
शुद्ध
व स्वच्छ होना चाहिए
, जैसे - देव
- स्थान , तीर्थ - भूमि ,
वन - पद्रेश
, पर्वत या उच्च - स्थान ,
उपासनागृह
और पवित्र नदी का तट ! गृह में एकांत ,
शांत जहां अधिक आवाज न पहुंचे
, ऐसा स्थान उपासना - गृह रखना चाहिए ।
प्रभु की प्रतिमा ,
चित्र
या यंत्र को अपने सम्मुख रखना चाहिए ।
प्रत्येक मंत्र के जाप का समय व संख्या निर्धारित होती है ,
उसी के अनुरुप जप का प्रारंभ करना चाहिए और जितने समय तक जितनी संख्या में जप करना है
, उसे विधि - पूर्वक करना चाहिए । समय में हेर
- फेर कभी नहीं करनी चाहिए ।
वस्त्र धुला हुआ ,
स्वच्छ , शुद्ध व बिना सिला होना चाहिए ।
धूप
- दीप अवश्य रखना चाहिए ।
जब तक मंत्र का जप या साधना चले ,
तब तक अभक्ष्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए । ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा नीतिमय जीवन बिताना चाहिए ।
मंत्रों के शब्दों का उच्चारण शुद्ध व बहुत धीमा होना चाहिए । सबसे अच्छा है कि
'' मानस जप '' करें ।
मंत्र की उपासना ,
ध्यान , पूजन और जप श्रद्धा व विश्वासपूर्वक करना चाहिए ।
दिशा ,
काल , मुद्रा
, आसन
, वर्ण
, पुष्प
, माला
, मंडल
, पल्लव और दीपनादि प्रकार को जानकर ही किसी मंत्र की साधना प्रारंभ की जानी चाहिए ।