ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षःप्रचोदयात्।

विष्णुप्रिया लक्ष्मी, शिवप्रिया सती से प्रकट हुई कामेक्षा भगवती आदि शक्ति युगल मूर्ति महिमा अपार, दोनों की प्रीति अमर जाने संसार, दुहाई कामाक्षा की, आय बढ़ा व्यय घटा, दया कर माई। ऊँ नमः विष्णुप्रियाय, ऊँ नमः शिवप्रियाय, ऊँ नमः कामाक्षाय ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा
प्रार्थना
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।
“ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
मोहिनी मोहिनी मैं करा मोहिनी मेरा नाम |राजा मोहा प्रजा मोहा मोहा शहर ग्राम ||त्रिंजन बैठी नार मोहा चोंके बैठी को |स्तर बहतर जिस गली मैं जावा सौ मित्र सौ वैरी को ||वाजे मन्त्र फुरे वाचा |देखा महा मोहिनी तेरे इल्म का तमाशा ||

द्वादश ज्योतिर्लिंगस्मरणं

भगवान् शिव के इस द्वादश ज्योतिर्लिंग का प्रतिदिन ध्यान करे जीवन में होने वाली सकारात्मक और सुखद परिवर्तन आप स्वयं अनुभव करेंगे।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकरममलेश्वरम।
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां  भीमशंकरं।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने।
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्रयम्बकं गौतमीतटे।
हिमालय तू केदारं घुश्मेशं च शिवालये।
एतानि ज्योतिर्लिंगानी सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।


ॐ नमः शिवाय।

श्री दुर्गा बत्तीस नाम माला

प्रतिदिन कम से कम 11 बार माता के इस नाम माला का जप करने से सभी प्रकार की विपत्तियों का शमन होता है। अनुभव कर के देखें।

दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी।
दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी।।
दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा।
दुर्गमज्ञानदा दुर्ग दैत्यलोकदवानला।।
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी।
दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता।।
दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी।
दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी।।
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी।
दुर्गमान्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी।।
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी।

Mantra To Conquer Death

                                                  mantra rāja mantra
Nṛsiṁha pūrvatāpinī upaniṣad reveals “mantra rāja mantra”, the king of all mantras.
those who fear for death and sins should get mantra rāja mantra initiated. Following is mantra rāja mantra. ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।om ugraṁ vīraṁ mahāviṣṇuṁ jvalantaṁ sarvatomukham |
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्य्मृत्युं नमाम्यहम्॥nṛsiṁhaṁ bhīṣaṇaṁ bhadraṁ mṛtymṛtyuṁ namāmyaham ||

                                          yajur mahālakṣmi gāyatrī mantra
Nṛsiṁha pūrvatāpinī upaniṣad reveals another powerful mantra known as “yajur mahālakṣmi gāyatrī mantra”. This mantra has twenty four akṣara-s like gāyatrī mantra. It is said that this mantra is capable of giving wealth and status. Following is yajur mahālakṣmi gāyatrī mantra.
ॐ भूर्लक्ष्मी भुवर्लक्ष्मीः सुवः कालकर्णी। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥
om bhūrlakṣmī bhuvarlakṣmīḥ suvaḥ kālakarṇī | tanno lakṣmīḥ pracodayāt ||


ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्य्मृत्युं नमाम्यहम्॥
ॐ भूर्लक्ष्मी भुवर्लक्ष्मीः सुवः कालकर्णी। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥

om ugraṁ vīraṁ mahāviṣṇuṁ jvalantaṁ sarvatomukham |
nṛsiṁhaṁ bhīṣaṇaṁ bhadraṁ mṛtymṛtyuṁ namāmyaham ||
om bhūrlakṣmī bhuvarlakṣmīḥ suvaḥ kālakarṇī | tanno lakṣmīḥ pracodayāt ||

कार्य सिद्धि असिआ उसा मन्त्र

विधि- किसी भी रविवार से प्रारम्भ कर सकते हैं, लाल धोती, लाल आसन, दक्षिण मुख कर सामने लोभान जलालें और मूंगा माला से मात्र पांच माला जप करें तो व्यक्ति के प्रत्येक सोचे हुए कार्य आसानी से होने लग जाते हैं
मन्त्र— ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्र: अ-सि-आ-उ-सा नमः स्वाहा

Om hraam hreem hrum hraum hrah a si-aa-u-saa-namah swaha”

धन प्राप्ति अरहंत मन्त्र

इस मन्त्र का जप सवा लाख करना है, पीला आसन, पीली धोती, उत्तर की तरफ मुह कर बैठे सामने घीं का दीपक जला लें और स्फटिक माला से जप प्रारम्भ करें, इस साधना को शुक्रवार से शुरू कर सकते हैंमन्त्र---
“अरहंत, सिद्ध, आ इ रि य, उवज्भं सव्व साहूणं” |

Arahant, siddha, aa I ri ya, uvaajbham savva sahunam.

हनुमान जंजीरा का शाबर मंत्र

ॐ हनुमान पहलवान पहलवान, बरस बारह का जबान,
हाथ में लड्डूा मुख में पान, खेल खेल गढ़ लंका के चौगान,
अंजनी‍ का पूत, राम का दूत, छिन में कीलौ
नौ खंड का भू‍त, जाग जाग हड़मान
हुँकाला, ताती लोहा लंकाला, शीश जटा
डग डेरू उमर गाजे, वज्र की कोठड़ी ब्रज का ताला
आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चंपे
ने सींण, अजरा झरे भरया भरे, ई घट पिंड
की रक्षा राजा रामचंद्र जी लक्ष्मण कुँवर हड़मान करें।

रोग को दूर करने के लिए चमत्कारिक सबद

किसी भी प्रकार के रोग को दूर करने के लिए निम्नलिखित सबद का ४१ दिन तक नित्य १०८ बार जप करना चाहिए।

    सेवी सतिगुरु आपणा हरि सिमरी दिन सभी रैणि।
    आपु तिआगि सरणि पवां मुखि बोली मिठड़े वैण।
    जनम जनम का विछुड़िआ हरि मेलहु सजणु सैण।
    जो जीअ हरि ते विछुड़े से सुखि न वसनि भैण।
    हरि पिर बिनु चैन न पाईअै खोजि डिठे सभि गैण।
    आप कामणै विछुडी दोसु न काहू देण।
    करि किरपा प्रभ राखि लेहु होरू नाही करण करेण।
    हरि तुध विणु खाकू रूलणा कहीअै किथै वैण।
नानक की बेनंतीआ हरि सुरजणु देखा नैण।

तुलसी नामाष्टक

तुलसी नामाष्टक पाठ करता हैं वह अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त करता हैं
यह पौधा "आयुर्वेद" के अनुसार उत्तम स्वास्थ व सर्वसुख देने वाला हैं| तुलसी भगवान् विष्णु को अति प्रिय माना जाता हैं और माँ लक्ष्मी विष्णु संग हमेशा रहतीहैं इसलिए इस पौधे का महत्व और भी बढ जाता हैं| तुलसी को आठ नाम दिए गए हैं यह आठ नाम निम्न श्लोक के रूप में कहे जाते हैं |
वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |
पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ||
एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |
य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत ||

वृंदा,वृदावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी,पुष्पसारा,नंदिनी,तुलसी और कृष्णजीवनी ये तुलसी के आठ प्रिय नाम हैं| जो कोई भी तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता हैं वह अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त करता हैं|

gayathri mantra गायत्री मंत्र

सूर्य गायत्री, चन्द्र गायत्री,मंगल गायत्री,बुध गायत्री,गुरु गायत्री,शुक्र गायत्री,शनि गायत्री,राहू गायत्री,केतु गायत्री,ब्रम्हा गायत्री,विष्णु गायत्री,शिव गायत्री,कृष्ण गायत्री,राधा गायत्री,लक्ष्मी गायत्री,तुलसी गायत्री,इन्द्र गायत्री,सरस्वती गायत्री,दुर्गा गायत्री,हनुमान गायत्री,पृथ्वी गायत्री,राम गायत्री,सीता गायत्री,वरुण गायत्री,नारायण गायत्री,हयग्रीव गायत्री,हंसा गायत्री.
सूर्य गायत्री-"ॐ आदित्याय च विधमहे प्रभाकराय धीमहि, तन्नो सूर्य :प्रचोदयात "।
चन्द्र गायत्री-ॐ अमृतंग अन्गाये विधमहे कलारुपाय धीमहि,तन्नो सोम प्रचोदयात"।
मंगल गायत्री -"ॐ अंगारकाय विधमहे शक्तिहस्ताय धीमहि, तन्नो भोम :प्रचोदयात"।
बुध गायत्री-"ॐ सौम्यरुपाय विधमहे वानेशाय च धीमहि, तन्नो सौम्य प्रचोदयात"।
गुरु गायत्री-"ॐ अन्गिर्साय विधमहे दिव्यदेहाय धीमहि, जीव: प्रचोदयात "|
शुक्र गायत्री -"ॐ भ्र्गुजाय विधमहे दिव्यदेहाय, तन्नो शुक्र:प्रचोदयात"।
शनि गायत्री-"ॐ भग्भवाय विधमहे मृत्युरुपाय धीमहि, तन्नो सौरी:प्रचोदयात "।
राहू गायत्री-"ॐ शिरोरुपाय विधमहे अमृतेशाय धीमहि, तन्नो राहू:प्रचोदयात"।
केतु गायत्री-"ॐ पद्म्पुत्राय विधमहे अम्रितेसाय धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात"।
ब्रम्हा गायत्री -"ॐ वेदात्मने च विधमहे हिरंगार्भाय तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात "।
विष्णु गायत्री-"ॐ नारायण विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात"।
शिव गायत्री-ॐ महादेवाय विधमहे, रुद्रमुर्तय धीमहि तन्नो शिव: प्रचोदयात "।
कृष्ण गायत्री-ॐ देव्किनन्दनाय विधमहे, वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात "|
राधा गायत्री - ॐ वृष भानु: जायै विधमहे, क्रिश्न्प्रियाय धीमहि तन्नो राधा :प्रचोदयात "|
लक्ष्मी गायत्री- ॐमहालाक्ष्मये विधमहे, विष्णु प्रियाय धीमहि तन्नो लक्ष्मी:प्रचोदयात|
तुलसी गायत्री-ॐ श्री तुल्स्ये विधमहे, विश्नुप्रियाय धीमहि तन्नो वृंदा:प्रचोदयात "|
इन्द्र गायत्री-ॐ सहस्त्र नेत्राए विधमहे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्र:प्रचोदयात "।
सरस्वती गायत्री-ॐ वाग देव्यै विधमहे काम राज्या धीमहि तन्नो सरस्वती :प्रचोदयात "।
दुर्गा गायत्री-ॐ गिरिजाये विधमहे, शिवप्रियाय धीमहि तन्नो दुर्गा :प्रचोदयात "|
हनुमान गायत्री-ॐ अन्जनिसुताय विधमहे वायु पुत्राय धीमहि, तन्नो मारुती :प्रचोदयात "।
पृथ्वी गायत्री-ॐ पृथ्वी देव्यै विधमहे सहस्र मूरतयै धीमहि तन्नो पृथ्वी :प्रचोदयात "।
राम गायत्री-ॐ दशारथाय विधमहे सीता वल्लभाय धीमहि तन्नो राम :प्रचोदयात "।
सीता गायत्री-ॐ जनक नंदिन्ये विधमहे भुमिजाय धीमहि तन्नो सीता :प्रचोदयात "|
यम् गायत्री-ॐ सुर्यपुत्राय विधमहे, महाकालाय धीमहि तन्नो यम् :प्रचोदयात "।
वरुण गायत्री-ॐ जल बिम्बाय विधमहे नील पुरु शाय धीमहि तन्नो वरुण :प्रचोदयात "।
नारायण गायत्री- ॐनारायण विधमहे, वासुदेवाय धीमहि तन्नो नारायण :प्रचोदयात "।
हयग्रीव गायत्री-ॐ वाणीश्वराय विधमहे, हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हयग्रीव :प्रचोदयात "|
हंसा गायत्री-ॐ परम्ह्न्साय विधमहे, महा हंसाय धीमहि तन्नो हंस: प्रचोदयात "|

रुद्राक्ष सभी दोषों का क्षय करनेवाला है

सर्वपापक्षयकरं रुद्राक्षं ब्रह्मणीश्वरी ।
अभुक्तो वापि भुक्तो वा नीचा नीचतरोऽपि वा ॥
रुद्राक्षं धारयेत् यस्तु मुच्यते सर्वपातकात् ।
रुद्राक्षधारणं पुण्यं कैवल्यं सदृशं भवेत् ॥
महाव्रतमिदं पुण्यं त्रिकोटितीर्थ संयुतम् ।
सहस्रं धारयेत् यस्तु रुद्राक्षाणां शुचिस्मिते ॥
तं नवंति सुराः सर्वे यथा रुद्रस्तथैव सः ।
अभावे तु सहस्रस्य बाहवोः षोडश षोडशः ॥

भावार्थः हे ब्रह्मणेश्वरी ! रुद्राक्ष सभी दोषों का क्षय करनेवाला है । किसी भी अवस्था में नीच मनुष्य भी रुद्राक्ष धारण करने से दोषमुक्त हो जाता है । यह महत् पुण्य कर्म कहा गया है । रुद्राक्ष धारण करना मोक्ष के समान माना गया है । इसको धारण करने से तीन करोड तीर्थों के भ्रमण का फल मिलता है । हे शुचिस्मिते ! जो मनुष्य १००० रुद्राक्ष धारण करता है, वह देवगणों द्वारा पूजित होता है । उसमें व रुद्र में अभेद भाव रहता है । एक सहस्र रुद्राक्ष धारण न कर सके तो भुजाओं में १६-१६ रुद्राक्ष ही धारण करने चाहिए ।

एकं शिखायां कवचयोर्द्वादश द्वादश क्रमात् ।
द्वात्रिंशत् कंठदेशे तु चत्वारिंशत् शिरे तथा ॥
उभयो कर्णयोः षट् षट् हृदि अष्टोत्तर शतम् ।
यो धारयति रुद्राक्षान् रुद्रवत् स च पूजितः ॥
मुक्ता-प्रवाल-स्फटिकैः सूर्येन्दु-माणि कांचनैः ।
समेतान् धारयेत यस्तु रुद्राक्षान् शिव एव सः ॥
केवलानामपि रुद्राक्षान् यो विभर्त्ति वरानने ।
तं न स्पृशंति पापनि तिमिराणीव भास्करः ॥

भावार्थः एक रुद्राक्ष चोटी में, १२-१२ रुद्राक्ष कवच में, ३२ रुद्राक्ष कंठ में व ४४ रुद्राक्ष मस्तक पर धारण करने चाहिए । छह-छ्ह रुद्राक्ष कानों में, १०८ रुद्राक्ष ह्र्दय पर धारण करनेवाला साधक संसार में रुद्र के समान पूजा जाता है । मुक्ता, प्रवाल, स्फटिक, सूर्यकांतमणि, चंद्रकांतमणि या स्वर्ण के साथ रुद्राक्ष धारण करनेवाला मनुष्य शिव समान हो जाता है । हे सुमुखी ! जो साधक केवल रुद्राक्ष धारण करता है । उसे पाप उसी प्रकार नहीं छू पाता जैसे तिमिर कभी सूर्य को नहीं छू सकता ।

रुद्राक्षमालया जप्तो मंत्रोऽनन्त फलप्रदः ।
यस्यांगे नास्ति रुद्राक्षं एकोऽपि वरवर्णिनी ।
तस्य जन्म निरर्थं स्यात् त्रिपुंड् रहितं यथा ॥
रुद्राक्षं मस्तके बद्धा शिर-स्नानं करोति यः ।
गंगास्नान-फलं तस्य जायते नात्र संशयः ॥
रुद्राक्षं पूजयेत् यस्तु विना तोयाभिषेचनैः ।
यत् फलं शिव पूजायां तदेवाप्नोति निश्चितम् ॥

भावार्थः हे वरवर्णिनी ! रुद्राक्ष की माला पर जाप करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है । यदि कोई एक भी रुद्राक्ष धारण नहीं करता है तो उसका जीवन वैसे ही व्यर्थ है जैसे त्रिपुंड्र रहित मनुष्य का होता है । जो मनुष्यं मस्तक पर रुद्राक्ष बांधकर शीश भाग से स्नान करता है उसे गंगा स्नान का फल मिलता है, इसमें तनिक भी संशय नहीं है । जो मनुष्य जल अभिषेक से रुद्राक्ष का पूजन करता है, उसे शिव-पूजा करने का फल मिलता है, यह भी सत्य है ।

त्रिपुंड्र धारण का विशेष महत्त्व है

सप्तकोटिमहामंत्रा उपमंत्रास्तथैव च ।
श्री विष्णोः कोटि मंत्रश्च कोटि मंत्रः शिवस्य च ।
ते सर्वे तेन जप्ता च यो विभर्ति त्रिपुंड्रकम् ॥
सहस्रं पूर्व्व जातानां सहस्रं च जनिष्यताम् ।
स्ववंशजातान् मर्त्यानां उद्धरेत् यस्त्रिपुंड्रकृत् ।
षडैश्वर्य गुणोपेत्तः प्राप्य दिव्यवपुस्ततः ।
दिव्यं विमानमारुह्‌य दिव्यस्त्रीशतसेवितः ।
विद्याधराणां सिद्धानां गंधर्वाणां महौजसाम् ।
इंद्रादिलोकपालानां लोकेषु च यथाक्रमम् ॥
भुक्त्त्वा भोगान् सुविपुलं प्रदेशानां पुरेषु च ।
ब्रह्मणः पदमासाद्य तत्र कल्पायुतं वसेत् ॥
विष्णुलोके च रमते आब्रह्मणः शतायुषम् ।
शिवलोके ततः प्राप्य रमते कालमक्षयम् ॥

भावार्थः ललाट पर त्रिपुंड्र धारण करने से विष्णु के महामंत्र व शिव के मंत्र का करोड्रों बार जाप करने का फल मिलता है । हे देवी ! जो मनुष्य त्रिपुंड्र धारण करता है उसकी पिछली व अगली पीढी के हजारों वंशजों का उद्धार होता है । इसके अतिरिक्त उसे सभी प्रकार का ऐश्वर्य मिलता है, वह दिव्य विमान पर रोहण करता है तथा देवांगनाएं उसकी सेवा करती हैं । ऐसा मनुष्य विद्याधर, सिद्धि. गंधर्व, इंद्रादि लोकों का सुख भोगकर १० हजार कल्पों तक (अयुत कल्प तक) ब्रह्मा बनता है । फिर विष्णुलोक में १०० ब्रह्माओं के काल तक निवास कर अक्षय काल तक शिवलोक में निवास करता है ।



दश महाविद्या शाबर मन्त्र

सत नमो आदेश । गुरुजी को आदेश । ॐ गुरुजी । ॐ सोऽहं सिद्ध की काया, तीसरा नेत्र त्रिकुटी ठहराया । गगण मण्डल में अनहद बाजा । वहाँ देखा शिवजी बैठा, गुरु हुकम से भितरी बैठा, शुन्य में ध्यान गोरख दिठा । यही ध्यान तपे महेशा, यही ध्यान ब्रह्माजी लाग्या । यही ध्यान विष्णु की माया ! ॐ कैलाश गिरी से, आयी पार्वती देवी, जाकै सन्मुख बैठ गोरक्ष योगी, देवी ने जब किया आदेश । नहीं लिया आदेश, नहीं दिया उपदेश । सती मन में क्रोध समाई, देखु गोरख अपने माही, नौ दरवाजे खुले कपाट, दशवे द्वारे अग्नि प्रजाले, जलने लगी तो पार पछताई । राखी राखी गोरख राखी, मैं हूँ तेरी चेली, संसार सृष्टि की हूँ मैं माई । कहो शिवशंकर स्वामीजी, गोरख योगी कौन है दिठा । यह तो योगी सबमें विरला, तिसका कौन विचार । हम नहीं जानत, अपनी करणी आप ही जानी । गोरख देखे सत्य की दृष्टि । दृष्टि देख कर मन भया उनमन, तब गोरख कली बिच कहाया । हम तो योगी गुरुमुख बोली, सिद्धों का मर्म न जाने कोई । कहो पार्वती देवीजी अपनी शक्ति कौन-कौन समाई । तब सती ने शक्ति की खेल दिखायी, दस महाविद्या की प्रगटली ज्योति ।
प्रथम ज्योति महाकाली प्रगटली ।ॐ निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली ओ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वहानी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी । जिह्वा ज्वाला दन्त काली । मद्यमांस कारी श्मशान की राणी । मांस खाये रक्त-पी-पीवे । भस्मन्ति माई जहाँ पर पाई तहाँ लगाई । सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगीन, नागों की नागीन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ॐ काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली ।
द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटी ।ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया । ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खण्डाग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा । नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया । घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा । पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा, डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया । चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी ।
तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी ।ॐ निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवधर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद । तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश । हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश । त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी । इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी । उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला । योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता ।
चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी ।‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ॐ आदि ज्योति अनादि ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत परम ज्योति मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी । बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया । चौदह भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार । योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता ।
पञ्चम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी ।सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया । काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या । पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी । देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी । चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी । छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे । काल ना खाये ।षष्टम ज्योति भैरवी प्रगटी ।
ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवें पाताल, सातवें पाताल मध्ये परम-तत्त्व परम-तत्त्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-भैरवी, सम्पत्त-प्रदा-भैरवी, कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंसिनि-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी । जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा । अमर लोक में हुवा निवासा ।
सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटीॐ पाताल निरंजन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आये, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावन्ती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि । डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी । जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाजा जीया आकाश तेरा होये । धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत ।
अष्टम ज्योति बगलामुखी प्रगटी ।ॐ सौ सौ दुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पिला । संहासन पीले ऊपर कौन बसे । सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी । कच्ची बच्ची काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुद्-गर मार, शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला । बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी, अनन्त कोट सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे । बाला बगलामुखी नमो नमस्कार ।
नवम ज्योति मातंगी प्रगटी ।ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते । ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये । तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।
दसवीं ज्योति कमला प्रगटी ।ॐ अ-योनी शंकर ॐ-कार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप । हाथ में सोने का कलश, मुख से अभय मुद्रा । श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा । देवी देवत्या ने किया जय ॐ-कार । कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का किया हवन । कहे गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान । जिसकी तीन लोक में भया मान । कमला देवी के चरण कमल को आदेश ।
सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो । सिद्ध योग मर्म जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका । योगी योग नित्य करे प्रातः उसे वरद भुवनेश्वरी माता । सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी । जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी । नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी । ॐ-कार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी । पाताल जोगन (कुण्डलिनी) गगन को चढ़ी, जहां पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी । आलस मोड़े, निद्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावन्ती करें । हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे । जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे । जो दसविद्या का सुमिरण करे । पाप पुण्य से न्यारा रहे । योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवरते । मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जाये । इतना दस महाविद्या मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया । अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अचलगढ़ पर्वत पर बैठ श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश । आदेश ॥

कमला महाविद्या शाबर मन्त्र

ॐ अ-योनी शंकर ॐ-कार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप । हाथ में सोने का कलश, मुख से अभय मुद्रा । श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा । देवी देवत्या ने किया जय ॐ-कार । कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का किया हवन । कहे गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान । जिसकी तीन लोक में भया मान । कमला देवी के चरण कमल को आदेश ।

मातंगी महाविद्या शाबर मन्त्र

ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते । ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये । तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।

बगलामुखी महाविद्या शाबर मन्त्र

ॐ सौ सौ दुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पिला । संहासन पीले ऊपर कौन बसे । सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी । कच्ची बच्ची काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुद्-गर मार, शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला । बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी, अनन्त कोट सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे । बाला बगलामुखी नमो नमस्कार ।
ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात् ।

धूमावती महाविद्या शाबर मन्त्र

ॐ पाताल निरंजन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आये, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावन्ती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि । डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी । जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाजा जीया आकाश तेरा होये । धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत ।

भैरवी महाविद्या शाबर मन्त्र


ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवें पाताल, सातवें पाताल मध्ये परम-तत्त्व परम-तत्त्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-भैरवी, सम्पत्त-प्रदा-भैरवी, कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंसिनि-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी । जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा । अमर लोक में हुवा निवासा ।

छिन्नमस्ता महाविद्या शाबर मन्त्र

सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया । काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या । पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी । देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी । चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी । छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे । काल ना खाये ।

भुवनेश्वरी महाविद्या शाबर मन्त्र

ॐ आदि ज्योति अनादि ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत परम ज्योति मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी । बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया । चौदह भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार । योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता ।

षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी महाविद्या शाबर मन्त्र

ॐ निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवधर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद । तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश । हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश । त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी । इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी । उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला । योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता ।

तारा महाविद्या शाबर मन्त्र

ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया । ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खण्डाग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा । नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया । घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा । पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा, डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया । चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी ।

महाकाली महाविद्या शाबर मन्त्र

ॐ निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली ओ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वहानी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी । जिह्वा ज्वाला दन्त काली । मद्यमांस कारी श्मशान की राणी । मांस खाये रक्त-पी-पीवे । भस्मन्ति माई जहाँ पर पाई तहाँ लगाई । सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगीन, नागों की नागीन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ॐ काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली ।

kamakhya kavach in hindi कामाख्या कवच

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 कामाख्या कवच
ॐ कामाख्याकवचस्य मुनिर्वृहस्पति स्मृतः ।
देवी कामेश्वरी तस्य अनुष्टुपछन्द इष्यतः ॥
विनियोगः सर्व्वसिद्धौ नञ्च श्रृण्वन्तु देवताः ।
शिरः कामेश्वरी देवी कामाख्या चक्षुषी मम ॥
शारदा कर्णयुगलं त्रिपुरा वदनं तथा ।
कण्ठे पातु महामाया हदि कामेश्वरी पुनः ॥
कामाख्या जठरे पातु शारदा पातु नाभितः ।
त्रिपुरा पार्श्वयोः पातु महामाया तु मेहने ॥
गुदे कामेश्वरी पातु कामाख्योरुद्वये तु माम् ।
जानुनोः शारदा पातु त्रिपुरा पातु जङ्घयोः ॥
महामाया पादयुगे नित्यं रक्षतु कामदा ।
केशे कोटेश्वरी पातु नासायां पातु दीर्घिका ॥
दन्तसङ्घाते मातङ्यवतु चाङ्गयोः ।
बाह्वोर्म्मां ललिता पातु पाण्योस्तु बनवासिनी ॥
विनध्यवासिन्यङ्ग लीषु श्रीकामा नखकोटिषु ।
रोमकूपेषु सर्व्वेषु गुप्तकामा सदावतु ॥
पादाङ्गुलि - पार्ष्णिभागे पातु मां भुवनेश्वरी ।
जिह्वायां पातु मां सेतुः कः कण्ठाभ्यन्तरेऽवतु ॥
पातु नश्चान्तरे वक्षः ईः पातु जठारान्तरे ।
सामिन्दुः पातु मां वस्तौ विन्दुर्व्विद्वन्तरेऽवतु ॥
ककारस्त्वचि मां पातु रकारोऽस्थिषु सर्व्वदा ।
लकाराः सर्व्वनाडिषु ईकारः सर्व्वसन्धिषु ॥
चन्द्रः स्नायुषु मां पातु विन्दुर्मज्जासु सन्ततम् ।
पूर्व्वस्यां दिशि चाग्नेष्यां दक्षिणे नैऋते तथा ॥
वारुणे चैव वायव्यां कौवेरे हरमन्दिरे ।
अकाराद्यास्तु वैष्णवा अष्टौ वर्णास्तु मन्त्रगाः ॥
पान्तु तिष्ठन्तु सततं समुदभवविवृद्धये ।
ऊर्द्घाधः पातु सततं मान्तु सेतुद्वयं सदा ॥
नवाक्षराणि मन्त्रेषु शारदा मन्त्रगोचरे ।
नवस्वरन्तु मां नित्यं नासादिषु समन्ततः ॥
वातपित्तकफेभ्यस्तु त्रिपुरायास्तु त्र्यक्षरम् ।
नित्यं रक्षतु भूतेभ्यः पिशाचेभ्यस्तथैव च ॥
तत् सेतु सततं पाता क्रव्यादभ्यो मान्निवारकौ ।
नमः कामेश्वरी देवीं महामायां जगन्मयीम् ॥
या भूत्वा प्रकृतिर्नित्यं तनोति जगदायतम् ।
कामाख्यामक्षमालाभयवरदकरां सिद्धसूत्रैकहस्तां ॥
श्वेतप्रेतोपरिस्थां मणिकनकयुतां कुङ्कमापीतवर्णाम् ।
ज्ञानध्यानप्रतिष्ठामतिशयविनयां ब्रह्मशक्रादिवन्द्या ॥
मग्नौ विन्द्वन्तमन्त्रप्रियतमविषयां नौमि विद्धयैरतिस्थाम् ।
मध्ये मध्यस्य भागे सततविनमिता भावहावली या,
लीला लोकस्य कोष्ठे सकलगुणयुता व्यक्त रुपैकनम्रा ।
विद्या विद्यैकशान्ता शमनशमकरी क्षेमकत्रीं वरास्या,
नित्यं पायात् पवित्रप्रणववरकरा कामपूर्वीश्वरी नः ॥
इति हरकवचं तनुस्थितं शमयति वै शमनं तथा यदि ।
इह गृहाण यतस्व विमोक्षणे सहित एष विधिः सह चामरैः ॥
इतीदं कवचं यस्तु कामाख्यायाः पठेद् बुधः ।
सुकृत् तं तु महादेवी तनुव्रजति नित्यदा ॥
नाधिव्याधिभयं तस्य न क्रव्यादमो भयं तथा ।
नाग्नितो नापि तोयेभ्यो न रिपुभ्यो न राजतः ॥
दीर्घायुर्व्वहुभोगी च पुत्रपौत्रसमन्वितः ।
आवर्त्तयन् शतं देवी मन्दिरे मोदते परे ॥
यथा यथा भवेदबद्धः संग्रामेऽन्यत्र वा बुधः ।
ततक्षणादेव मुक्तः स्यात् स्मरणात् कवचस्य तु ॥

kamakhya stotram कामाख्या स्तोत्र

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  from योगिनीतन्त्र 
  कामाख्या स्तोत्र
जय कामेशि चामुण्डे जय भूतापहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
विश्वमूर्ते शुभे शुद्धे विरुपाक्षि त्रिलोचने ।
भीमरुपे शिवे विद्ये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
मालाजये जये जम्भे भूताक्षि क्षुभितेऽक्षये ।
महामाये महेशानि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कालि कराल विक्रान्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कालि कराल विक्रान्ते कामेश्वरि हरप्रिये ।
सर्व्वशास्त्रसारभूते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामरुप - प्रदीपे च नीलकूट - निवासिनि ।
निशुम्भ - शुम्भमथनि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामाख्ये कामरुपस्थे कामेश्वरि हरिप्रिये ।
कामनां देहि में नित्यं कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
वपानाढ्यवक्त्रे त्रिभुवनेश्वरि ।
महिषासुरवधे देवि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
छागतुष्टे महाभीमे कामख्ये सुरवन्दिते ।
जय कामप्रदे तुष्टे कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
भ्रष्टराज्यो यदा राजा नवम्यां नियतः शुचिः ।
अष्टम्याच्च चतुदर्दश्यामुपवासी नरोत्तमः ॥
संवत्सरेण लभते राज्यं निष्कण्टकं पुनः ।
य इदं श्रृणुवादभक्त्या तव देवि समुदभवम् ॥
सर्वपापविनिर्म्मुक्तः परं निर्वाणमृच्छति ।
श्रीकामरुपेश्वरि भास्करप्रभे, प्रकाशिताम्भोजनिभायतानने ।
सुरारि - रक्षः - स्तुतिपातनोत्सुके, त्रयीमये देवनुते नमामि ॥
सितसिते रक्तपिशङ्गविग्रहे, रुपाणि यस्याः प्रतिभान्ति तानि ।
विकाररुपा च विकल्पितानि, शुभाशुभानामपि तां नमामि ॥
कामरुपसमुदभूते कामपीठावतंसके ।
विश्वाधारे महामाये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
अव्यक्त विग्रहे शान्ते सन्तते कामरुपिणि ।
कालगम्ये परे शान्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
या सुष्मुनान्तरालस्था चिन्त्यते ज्योतिरुपिणी ।
प्रणतोऽस्मि परां वीरां कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
दंष्ट्राकरालवदने मुण्डमालोपशोभिते ।
सर्व्वतः सर्वंव्गे देवि कामेश्वरि नमोस्तु ते ॥
चामुण्डे च महाकालि कालि कपाल - हारिणी ।
पाशहस्ते दण्डहस्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
चामुण्डे कुलमालास्ये तीक्ष्णदंष्ट्र महाबले ।
शवयानस्थिते देवि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥

रतिप्रिया धनदेश्ररी मन्त्र

RATIPRIYA YAKSHINI SHABAR MANTRA रतिप्रिया धनदेश्ररी मन्त्र

RATIPRIYA YAKSHINI RATIPRIYA NAAM JAB SUMIRON TAB HAAZIR HOVE RATIPRIYA BHAWAANI KAARZ SIDDH KARE JO MERI BULAI HAAZIR NAA HOVE TO MAHAADEVJEE MAA GAURI KEE AAN YAKSHAADHIPATI KUBER KEE AAN JO KAARAZ SIDDH NAA KARE TO LONAA CHAMAREE KEE KUND BHANGI KE NARAK KUND MEIN GIRE,LAKH LAKH BICHUAN KEE PEERA SAHE,KRODHADIPATI BHAIRAV KE KOP KEE BHAGIDAAR BANE.
SHABAD SANCHAA PIND KANCHAA PHURO MANTRA GURU GORAKHNATH VAACHA.

ॐ हेमप्राकारमध्ये सुरविटपितटे रक्तपीठाधिरूढां ध्यायेत्तां यक्षिणीं वै  परिमल कुसुम उद्भासिध मिल्लाभाराम्।
पीनोत्तुंग स्तनाढ्यां कुवलयनयनां रत्नकांचीं कराभ्यां भ्राम्यदु रक्तोत्पलाभ्यां नवरवि वसनां रक्तभूषांग रागाम्॥
om hemaprākāramadhye suraviṭapitaṭe raktapīṭhādhirūḍhāṁ dhyāyettāṁ yakṣiṇīṁ vai  parimala kusuma udbhāsidha millābhārām |
pīnottuṁga stanāḍhyāṁ kuvalayanayanāṁ ratnakāṁcīṁ karābhyāṁ bhrāmyadu raktotpalābhyāṁ navaravi vasanāṁ raktabhūṣāṁga rāgām ||

Meaning:
She is in the roundabout made of gold where gods and goddesses go around. She is seated on a red throne. She has four hands. She is holding in two hands red flowers, and with other two hands she gold and very precious precious gems. She has red complexion like sun appearing at dawn. She is wearing garlands made out of fragrant and colourful flowers.

Mantra:

ॐ रं श्रीं ह्रीं धं धनदे रतिप्रिये स्वाहा।
DO THE PANCHOPACHAR PUJAN CHANT THE ABOVE MANTRA 1100 TIMES DAILY WITH THE HELP OF THE RUDRAKSH OR ANY CORAL ROSARY IN THE NIGHT AND SEE THE EFFECT

इससे श्री गणेश व लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है

ऊं नमो विघ्न राजाय सर्व सौख्य प्रदायिने, दुष्टारिष्ट विनाशाय पराय परात्मने.लंबोदरं महावीर्यम् नागयज्ञोप शोभितम्. अर्धचंद्र धरं देवं विघ्न व्यूह विनाशनम्. ऊं ह्रां ह्रीं ह्रैं ह्रौं ह्र: हेरम्बाय नमोनम:. सर्विसद्धि प्रदोसि त्वं सिद्धि-बुद्धि प्रदोभव:. चिंतितार्थ प्रवस्विहसततं मोदक प्रिय:. सिंदूरारूणवरभ्रैश्च पूजितो वरदायकम्. इह गणपति स्तोत्र च पठेद भिक्त भाव नर:. तस्यदेहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मूच्चित.
दिये गये मंत्र का 21 हजार या सवा लाख जाप करना चाहिए

श्रीचण्डी-ध्वज स्तोत्रम्

श्रीचण्डी-ध्वज स्तोत्रम्

विनियोगः- अस्य श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रां बीजं, श्रीं शक्तिः, श्रूं कीलकं मम वाञ्छितार्थ फल सिद्धयर्थे विनियोगः ।
अंगन्यासः- श्रां, श्रीं, श्रूं, श्रैं, श्रौं, श्रः से हृदयादिन्यास व करन्यास करें ।
।। मूल-पाठ ।।
ॐ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः ।
परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः ।। १ ।।
नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २ ।।
रक्ष मां शरण्ये देवि धन-धान्य-प्रदायिनि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ३ ।।
नमस्तेऽस्तु महाकाली पर-ब्रह्म-स्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ४ ।।
नमस्तेऽस्तु महालक्ष्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ५ ।।
नमस्तेऽस्तु महासरस्वती परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ६ ।।
नमस्तेऽस्तु ब्राह्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ७ ।।
नमस्तेऽस्तु माहेश्वरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ८ ।।
नमस्तेऽस्तु च कौमारी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ९ ।।
नमस्ते वैष्णवी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १० ।।
नमस्तेऽस्तु च वाराही परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ११ ।।
नारसिंही नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १२ ।।
नमो नमस्ते इन्द्राणी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १३ ।।
नमो नमस्ते चामुण्डे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १४ ।।
नमो नमस्ते नन्दायै परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १५ ।।
रक्तदन्ते नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १६ ।।
नमस्तेऽस्तु महादुर्गे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १७ ।।
शाकम्भरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १८ ।।
शिवदूति नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १९ ।।
नमस्ते भ्रामरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २० ।।
नमो नवग्रहरुपे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २१ ।।
नवकूट महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २२ ।।
स्वर्णपूर्णे नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २३ ।।
श्रीसुन्दरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २४ ।।
नमो भगवती देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २५ ।।
दिव्ययोगिनी नमस्ते परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २६ ।।
नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २७ ।।
नमो नमस्ते सावित्री परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २८ ।।
जयलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २९ ।।
मोक्षलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ३० ।।
चण्डीध्वजमिदं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम् ।
राजते सर्वजन्तूनां वशीकरण साधनम् ।। ३२ ।।
।। श्रीचण्डीध्वज स्तोत्रम् ।।

Shiv Tandav Stotram शिवताण्डवस्तोत्रम्

shiv tandav stotram, shiv tandav stotra, tandava stotram in English Hindi Sanskrit  it remove all bad effect of moon Saturn Rahu Ketu in your kundli if your star signs, horoscope signs or astrology signs are badly effected by Saturn Rahu Ketu then in front of Shiv yantra chant Shiv Tandav Stotram 11 times daily you will get great positive effect of all planets and get health and wealth.
if your numerology number is 4 or 8 then also use this Shiv Tandav Stotram.
At the time of prayer-completion, that who reads this song by Daśavaktra (Dasavaktra Ravan) after the prayer of Shambhu gives him stable wealth including chariots, elephants and horses, and beautiful face.

शिवताण्डवस्तोत्रम् - Shiva Tandava Stotra

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् । डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥
The Shiva, Who having held a long-garland of the Snakes at the, purified by the flow of trickling water-drops in the forest-like hair-locks, danced the fierce Tāṇḍava-dance to the music of a sounding-drum - Damaru (डमरु), - May that Shiva extend my bliss.

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥
At every moment, may I find pleasure in Shiva, Whose head is situated in between the creeper-like unsteady waves of Nilimpanirjharī (Gańgā गंगा Ganga) which is roaming unsteadily in the frying-pan like twisted hair-locks, Who has crackling and blazing fire at the surface of forehead at his third eye, and Who has a crescent-moon (young moon) at the forehead


धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे( क्वचिच्चिदंबरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
May my mind seeks happiness in Śiva, Whose mind has the shining universe and all the living-beings inside, Who is the charming sportive-friend of the daughter of the mountain-king of the Earth (i.e. Himālaya हिमालय daughter Parvati पार्वती), Whose uninterrupted series of merciful-glances conceals immense-troubles, and Who has direction as His clothes.

लताभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥
May my mind hold in Shiva, by Whom - with the light from the jewels of the shining-hoods of creeper-like yellow-snakes — the face of Dikkanyās’ are smeared with Kadamba-juice like red Kuńkuma, Who looks dense due to the glittering skin-garment of an intoxicated elephant, and Who is the Lord of the ghosts.

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥
For a long time, may Shiva — Whose foot-basement is grey due to the series of pollen dust from flowers at the head of Indra (Sahasralocana सहस्रलोचन इन्द्र) and all other demi-gods, Whose matted hairlocks are tied by a garland of the king of snakes, and Who has a head-jewel of the friend of cakora bird — produce prosperity.

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥
May we acquire the possession of tress-locks of Shiva, Which absorbed the five-arrows (of Kāmadeva) in the sparks of the blazing fire stored in the rectangular-forehead, Which are being bowed by the leader of supernatural-beings, Which have an enticing-forehead with a beautiful streak of crescent-moon.

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥
May I find pleasure in Trilocana, Who offered the five great-arrows (of Kāmadeva) to the blazing and chattering fire of the plate-like forehead, and Who is the sole-artist placing variegated artistic lines on the breasts of the daughter of Himālaya (Pārvatī पार्वती Parvati).

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥
May Shiva — Whose cord-tied neck is dark like a night with shining-moon obstructed by a group of harsh and new clouds, Who holds the River Gańgā (Ganga गंगा), Whose cloth is made of elephant-skin, Who has a curved and crescent moon placed at the forehead, and Who bears the universe — expand [my] wealth.

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
I adore Śiva, Who supports the dark glow of blooming blue lotus series at around the girdle of His neck, Who cuts-off Smara (Kāmadeva कामदेव), Who cuts-off Pura, Who cuts-off the mundane existence, Who cuts-off the sacrifice (of Dakṣa दक्ष), Who cuts-off the demon Gaja, Who cuts-off Andhaka, and Who cuts-off Yama (death यम).

अखर्व(अगर्व)सर्वमङ्गलाकलाकदंबमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम्  ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥
I adore Shiva, Who only eats the sweet-flow of nectar from the beautiful flowers of Kadamba-trees which are the abode of all important auspicious qualities, Who destroys Smara (Kamadeva कामदेव), Who destroys Pura, Who destroys the mundane existence, Who destroys the sacrifice (of Dakṣa दक्ष), Who destroys the demon Gaja, Who destroys Andhaka, and Who destroys Yama (death यम).

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥ May Shiva, Whose dreadful forehead has oblations of plentiful, turbulent and wandering snake-hisses — first coming out and then sparking, Whose fierce tāṇḍava-dance is set in motion by the sound-series of the auspicious and best-drum (ḍamaru Damaru डमरु) — which is sounding with ‘dhimit-dhimit’ sounds, be victorious.

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृतिकः (समं प्रवर्तयन्मनः)कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
When will I adore Sadashiva सदाशिव with an equal vision towards varied ways of the world, a snake or a pearl-garland, royal-gems or a lump of dirt, friend or enemy sides, a grass-eyed or a lotus-eyed person, and common men or the king.

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
Living in the hollow of a tree in the thickets of River Ganga गंगा, always free from ill-thinking, bearing añjali at the forehead, free from lustful eyes, and forehead and head bonded, when will I become content while reciting the mantra ‘‘Shiva?’’

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१४॥
Reading, remembering, and reciting this eternal, having spoken thus, and the best among best eulogy indeed incessantly leads to purity. In preceptor Hara (Shiva हर) immediately the state of complete devotion is achieved; no other option is there. Just the thought of Shiva (Sankara, Shankara, शंकर)is enough for the people.

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः  ॥१५॥
At the time of prayer-completion, that who reads this song by Daśavaktra (Dasavaktra Ravan ) after the prayer of Shambhu — Shambhu (शंभो) gives him stable wealth including chariots, elephants and horses, and beautiful face.

इति श्रीरावणविरचितं शिवताण्डवस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

kanakadhara stotram कनकधारा स्तोत्र


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धन प्राप्ति का चमत्कारिक उपाय कनकधारा स्तोत्र। अखंड लक्ष्मी प्राप्ति के लिये : कनकधारा स्तोत्रम. धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं।कनकधारा स्तोत्र : हिन्दी पाठ।  व्यक्ति अपने जीवन में धन प्राप्ति के लिए हर तरह के उपाय करता है। वह प्रत्येक देवता से संबंधित मंत्रों का जप करता है और पूजा-अर्चना करता है। धन प्राप्ति के लिए कनकधारा स्तोत्र का जप बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है।On her who is personification of Vedas,On her who is the mother of the three worlds,On her who is Goddess Rema,Will be blessed without doubt,With all good graceful qualities,With all the great fortunes that one can get,And would live in the world,With great recognition from even the learned.
 
 ।। कनकधारा स्तोत्र ।। (Kanak Dhara Stotra)

अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताऽखिल विभूतिरपाङ्ग-लीला
माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥१॥
Angam hare pulaka bhooshanamasrayanthi,
Bhringanga neva mukulabharanam thamalam,
Angikrithakhila vibhuthirapanga leela,
Mangalyadasthu mama mangala devathaya.
The Goddess Lakshmi is attracted,
Like the black bees getting attracted,
To the unopened buds of black Tamala[1] tree,
Let her who is the Goddess of all good things,
Grant me a glance that will bring prosperity.

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपा-प्रणहितानि गताऽऽगतानि ।
मालादृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥२॥
Mugdha muhurvidhadhadathi vadhane Murare,
Premathrapapranihithani gathagathani,
Mala dhrishotmadhukareeva maheth pale ya,
Sa ne sriyam dhisathu sagarasambhavaya.
Filled with hesitation and love,
Of her who is born to the ocean of milk,
To the face of Murari,
Like the honey bees to the pretty blue lotus,
And let those glances shower me with wealth.

विश्वामरेन्द्रपद-वीभ्रमदानदक्ष
आनन्द-हेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणर्द्ध
मिन्दीवरोदर-सहोदरमिन्दिरायाः ॥३॥
Viswamarendra padhavee bramadhana dhaksham,
Ananda hethu radhikam madhu vishwoapi,
Eshanna sheedhathu mayi kshanameekshanartham,
Indhivarodhara sahodharamidhiraya
Her side long glance of a moment,
Made Indra regain his kingdom,
And is making Him who killed Madhu  happy.
And let her with her blue lotus eyes glance me a little.

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थित-कनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥
Ameelithaksha madhigamya mudha Mukundam
Anandakandamanimeshamananga thanthram,
Akekara stiththa kaninika pashma nethram,
Bhoothyai bhavenmama bhjangasayananganaya.
Filled with happiness , shyness and the science of love,
On the ecstasy filled face with closed eyes of her Lord,
And let her , who is the wife of Him who sleeps on the snake,
Shower me with wealth.

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रित कौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला,
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥
Bahwanthare madhujitha srithakausthube ya,
Haravaleeva nari neela mayi vibhathi,
Kamapradha bhagavatho api kadaksha mala,
Kalyanamavahathu me kamalalayaya
Wears the Kousthuba as ornament,
And also the garland of glances, of blue Indraneela,
Filled with love to protect and grant wishes to Him,
Of her who lives on the lotus,
And let those also fall on me,
And grant me all that is good.

कालाम्बुदाळि-ललितोरसि कैटभारे-
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति-
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥६॥
Kalambudhaalithorasi kaida bhare,
Dharaadhare sphurathi yaa thadinganeva,
Mathu samastha jagatham mahaneeya murthy,
Badrani me dhisathu bhargava nandanaya
She is shining on the dark , broad chest,
Of He who killed Kaidaba,
And let the eyes of the great mother of all universe,
Who is the daughter of Sage Bharghava,
Fallon me lightly and bring me prosperity.

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत् प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थर-मीक्षणार्धं
मन्दाऽलसञ्च मकरालय-कन्यकायाः ॥७॥
Praptham padam pradhamatha khalu yat prabhavath,
Mangalyabhaji madhu madhini manamathena,
Mayyapadetha mathara meekshanardham,
Manthalasam cha makaralaya kanyakaya.
The killer of Madhu,
Through the power of her kind glances,
Loaded with love and blessing
And let that side glance ,
Which is auspicious and indolent,
Fall on me.

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा
मस्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्म-घर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायण-प्रणयिनी नयनाम्बुवाहः ॥८॥
Dhadyaddhayanupavanopi dravinambhudaraam,
Asminna kinchina vihanga sisou vishanne,
Dhushkaramagarmmapaneeya chiraya dhooram,
Narayana pranayinee nayanambhuvaha.
And shower the rain of wealth on this parched land,,
And quench the thirst of this little chataka bird,
And likewise ,drive away afar my load of sins,
Oh, darling of Narayana, By the glance from your cloud like dark eyes.

इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्ट-कमलोदर-दीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥९॥
Ishta visishtamathayopi yaya dhayardhra,
Dhrishtya thravishta papadam sulabham labhanthe,
Hrishtim prahrushta kamlodhara deepthirishtam,
Pushtim krishishta mama pushkravishtaraya.
Grants she a place in heaven which is difficult to attain,
Just by a glance of her compassion filled eyes,
Let her sparkling eyes which are like the fully opened lotus,
Fall on me and grant me all my desires.

 गीर्देवतेति गरुडध्वजभामिनीति
शाकम्भरीति शशिशेखर-वल्लभेति ।
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥१०॥
Gheerdhevathethi garuda dwaja sundarithi,
Sakambhareethi sasi shekara vallebhethi,
Srishti sthithi pralaya kelishu samsthitha ya,
Thasyai namas thribhvanai ka guros tharunyai.
She is the darling of Him who has Garuda as flag,
She is the power that causes of death at time of deluge,
And she is the wife of Him who has the crescent,
And she does the creation , upkeep and destruction at various times,
And my salutations to this lady who is worshipped by all the three worlds

श्रुत्यै नमोऽस्तु नमस्त्रिभुवनैक-फलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणाश्रयायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र निकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै ॥११॥
Sruthyai namosthu shubha karma phala prasoothyai,
Rathyai namosthu ramaneeya gunarnavayai,
Shakthyai namosthu satha pathra nikethanayai,
Pushtayi namosthu purushotthama vallabhayai.
Salutation to you as Rati for giving the most beautiful qualities,
Salutation to you as Sakti ,who lives in the hundred petalled lotus,
And salutations to you who is Goddess of plenty,
And is the consort of Purushottama.

नमोऽस्तु नालीक-निभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधि-जन्मभूत्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृत-सोदरायै
नमोऽस्तु नारायण-वल्लभायै ॥१२॥
Namosthu naleekha nibhananai,
Namosthu dhugdhogdhadhi janma bhoomayai,
Namosthu somamrutha sodharayai,
Namosthu narayana vallabhayai.
As the lotus in full bloom,
Salutations to her who is born from ocean of milk,
Salutations to the sister of nectar and the moon,
Salutations to the consort of Narayana.
 नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै ।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै ॥१३॥
Namosthu hemambhuja peetikayai,
Namosthu bhoo mandala nayikayai,
Namosthu devathi dhaya prayai,
Namosthu Sarngayudha vallabhayai.
Salutations to her who is the leader of the universe,
Salutations to her who showers mercy on devas,
And salutations to the consort of Him who has the bow called Saranga.
 नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ॥१४॥
Namosthu devyai bhrugu nandanayai,
Namosthu vishnorurasi sthithayai,
Namosthu lakshmyai kamalalayai,
Namosthu dhamodhra vallabhayai.
Salutations to her lives on the holy chest of Vishnu,
Salutations to Goddess Lakshmi who lives in a lotus,
And saluations to her who is the consort of Damodhara.
 नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै ।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥१५॥
Namosthu Kanthyai kamalekshanayai,
Namosthu bhoothyai bhuvanaprasoothyai,
Namosthu devadhibhir archithayai,
Namosthu nandhathmaja vallabhayai.
Salutations to her who is the earth and also mother of earth,
Salutations to her who is worshipped by Devas,
And salutations to her who is the consort of the son of Nanda.
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय-नन्दनानि
साम्राज्यदान विभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्-वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यत् ॥१६॥ 
Sampath karaani sakalendriya nandanani,
Samrajya dhana vibhavani saroruhakshi,
Twad vandanani dhuritha haranodhythani,
Mamev matharanisam kalayanthu manye.
Giver of the right to rule kingdoms,
She who has lotus like eyes,
She to whom Salutations remove all miseries fast,
And my mother to you are my salutations.

यत्कटाक्ष-समुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
सन्तनोति वचनाऽङ्गमानसैः
स्त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे ॥१७॥ 
Yath Kadaksha samupasana vidhi,
Sevakasya sakalartha sapadha,
Santhanodhi vachananga manasai,
Twaam murari hridayeswareem bhaje
Is blessed by all known wealth and prosperity,
And so my salutations by word, thought and deed,
To the queen of the heart of my Lord Murari
सरसिज-निलये सरोजहस्ते
धवलतरांशुक-गन्ध-माल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥१८॥
Sarasija nilaye saroja hasthe,
Dhavalathamamsuka gandha maya shobhe,
Bhagavathi hari vallabhe manogne,
Tribhuvana bhoothikari praseeda mahye
She who has lotus in her hands,
She who is dressed in dazzling white,
She who shines in garlands and sandal paste,
The Goddess who is the consort of Hari,
She who gladdens the mind,
And she who confers prosperity on the three worlds,
Be pleased to show compassion to me.
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट
स्वर्वाहिनीविमलचारु-जलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष
लोकाधिराजगृहिणीम मृताब्धिपुत्रीम् ॥१९॥
Dhiggasthibhi kanaka kumbha mukha vasrushta,
Sarvahini vimala charu jalaapluthangim,
Prathar namami jagathaam janani masesha,
Lokadhinatha grahini mamrithabhi puthreem.
Pour from out from golden vessels,
The water from the Ganga which flows in heaven,
For your holy purifying bath,
And my salutations in the morn to you ,
Who is the mother of all worlds,
Who is the house wife of the Lord of the worlds,
And who is the daughter of the ocean which gave nectar.
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूर-तरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥२०॥
Kamale Kamalaksha vallabhe twam,
Karuna poora tharingithaira pangai,
Avalokaya mamakinchananam,
Prathamam pathamakrithrimam dhyaya
She who is the consort,
Of the Lord with Lotus like eyes,
She who has glances filled with mercy,
Please turn your glance on me,
Who is the poorest among the poor,
And first make me the vessel ,
To receive your pity and compassion.
 स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमीभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
 गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुविबुधभाविताशयाः ॥२१॥
Sthuvanthi ye sthuthibhirameeranwaham,
Thrayeemayim thribhuvanamatharam ramam,
Gunadhika guruthara bhagya bhagina,
Bhavanthi the bhuvi budha bhavithasayo.
॥ श्रीमदाध्यशङ्कराचार्यविरचितं श्री कनकधारा स्तोत्रम् समाप्तम् ॥
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Chandra Sekaharstakam श्री चन्द्रशेखराष्टकम्

रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृङ्गनिकेतनं
शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम् ।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥१॥
Rathna Sanu Sarasanam, Rajathadri Sringa Nikethanam,
Sinjinee Krita Pannageswaramachyutaanala Sayakam,
Kshipra Dhagdha Pura Trayam Tri Dashaa layairabhi Vanditham,
Chandra Shekaramashraye Mama Kim Karishyathi Vai Yama.[1]

पञ्चपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं
भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम् ।
भस्मादिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥२॥
Pancha Paada Pa Pushpa Gandhi padambuja Dwaya Shobitham,
Bhala Lochana Jaata Paavaka Dagdha Manmatha Vigraham,
Basma Digdha Kalevaram, Bhava Naashinam, Bhava Mavyayam,
Chandra Shekaramashraye Mama Kim Karishyathi Vai Yama.[2]

मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं
पङ्कजासनपद्मलोचनपूजिताङ्घ्रिसरोरुहम् ।
देवसिद्धतरङ्गिणीकरसिक्तशीतजटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥३॥
Matha Varana Mukhya Charma Kruthothareeya Mahoharam,
Pankajasana Padma Lochana Poojithangri Saroruham,
Deva Sindhu Tharanga Seekara Siktha Jatadharam,
Chandra Shekaramashraye Mama Kim Karishyathi Vai Yama.[3]

कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं
नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम् ।
अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥४॥

Kundali Krutha Kundaleeswara Kundalam Vrusha Vahanam,
Naradadhi Muneeswara Sthutha Vaibhavam Bhuvaneswaram,
Andhakandhaka Masrithamara Padapam Samananthakam,
Chandra Shekaramashraye Mama Kim Karishyathi Vai Yama.


 यक्षराजसखं भगाक्षिहरं भुजङ्गविभूषणं
शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम् ।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥५॥

 Yaksha Raja Sakham Bhagaksha Haram Bhujanga Bhooshanam,
Shila Raje Suthaa Parish Krutha Charu Vama Kalebharam,
Kshweda Neela Galam Praswadha Dharinam Mruga Dharinam,
Chandra Shekaramashraye Mama Kim Karishyathi Vai Yama.


भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम् ।
भुक्तिमक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥६॥

Bheshajam Bhava Roginamkhilapadamapa Harinam,
Daksha Yagna Vinasanam Trigunathmakam Trivilochanam,
Bhukthi Mukthi Phala Pradham Sakalagha Sanga Nibharhanam,
Chandra Shekaramashraye Mama Kim Karishyathi Vai Yama


भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्वरं
सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम् ।
भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥७॥

Bhaktha Vathsala Marchitham, Nidhim,Akshayam, Haridambaram,
Sarva Bhoothapathim, Parathparam Apreya Manuthamam,
Soma Varinabhoohuthasana Somapanilakha Krutheem,
Chandra Shekaramashraye Mama Kim Karishyathi Vai Yama


 विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमथ प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम्
क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमावृतं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥८॥

Viswa Srushti Vidhayinam, Punareva Palana Thathparam,
Samharathamapi Prapanchamasesha Loka Nivasinam,
Kredayanthamaharnisam, Gana Nadha Yudha Samnvitham,
Chandra Shekaramashraye Mama Kim Karishyathi Vai Yama.

Shiva Panchakshari Stotra शिबपञ्चाक्षरस्तोत्रम्

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय  भस्भाङ्गराय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय  तस्मै काराय नमः शिवाय ॥१॥
Nagendraharaya Trilochanaya, Bhasmangaragaya Maheshvaraya
Nityaya Shuddhaya Digambaraya, Tasmai Nakaraya Namah Shivaya .
Salutations to Shiva, who wears the king of snakes as a garland, the three-eyed god, whose body is smeared with ashes, the great lord, the eternal and pure one, who wears the directions as his garment, and who is represented by the syllable “na ”

मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय  नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय  तस्मै काराय नमः शिवाय ॥२॥
Mandakini salila chandana charchitaya, Nandishvara pramathanatha Maheshvaraya
Mandarapushpa bahupushhpa supujitaya, Tasmai Makaraya Namah Shivaya .
I bow to Shiva, who has been worshipped with water from the Ganga (Mandakini) and anointed with sandalwood paste, the lord of Nandi, the lord of the host of goblins and ghosts, the great lord, who is worshiped with Mandara and many other kinds of flowers, and who is represented by the syllable “ma. ”


शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्जाय  तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥
Shivaya Gauri vadanabjavrunda, Suryaya Dakshadhvara Nashakaya
Shrinilakanthaya Vrushhadhvajaya, Tasmai Shikaraya Namah Shivaya
Salutations to shiva, who is all-auspiciousness, who is the sun that causes the lotus face of Gauri (Parvati) to blossom, who is the destroyer of the yajna of Daksha, whose throat is blue (Nilakantha), whose flag bears the emblem of the bull, and who is represented by the syllable “shi”

वसिष्टकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय  तस्मै काराय नमः शिवाय ॥४॥
Vasishhtha kumbhodbhava gautamarya, Munindra devarchita shekharaya
Chandrarkavaishvanara lochanaya, Tasmai Vakaraya Namah Shivaya .
Vasishhtha, Agastya, Gautama, and other venerable sages, and Indra and other gods have worshipped the head of (Shiva’s linga). I bow to that Shiva whose three eyes are the moon, sun and fire, and who is represented by the syllable “va”

यक्षस्वरुपाय जटाधराय  पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय  तस्मै काराय नमः शिवाय ॥५॥
Yakshasvarupaya Jatadharaya, Pinakahastaya Sanatanaya
Divyaya Devaya Digambaraya, Tasmai Yakaraya Namah Shivaya
salutations to Shiva, who bears the form of a Yaksha, who has matted hair on his head, who bears the Pinaka bow in his hand, the primeval lord, the brilliant god, who is digambara (naked), and who is represented by the syllable “ya. ”


पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥६॥
Panchaksharamidam Punyam Yah Pathechchhivasannidhau.
Shivalokamavapnoti Shivena Saha Modate
.Anyone who recites this sacred five-syllable mantra, (Namah Shivaya) near the Shiva (linga), attains the abode of Shiva and rejoices there with Shiva.

श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं शिबपञ्चाक्षरस्तोत्रम् शुभम् ॥


कूष्माण्डा के रूप में देवी की स्तुति

ओम् जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽतु ते।।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽतु ते।।
मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशोदेहि द्विषो जहि।।
महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रूपां देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशों देहि द्विषो।।
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोभ्दवाम्।।

पांचवीं दुर्गा स्कन्दमाता पूजा का अर्चना

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा।
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
किं वर्णयाम तव रूपमचिन्त्यमेतत्
किं चातिवीर्यमसुरक्षयकारि भूरि।
किं चाहवेषु चरितानि तवाभ्वदुतानि
सर्वेषु देव्यसुरदेवगणादिकेषु।।
हेतुः समस्तजगतां त्रिगुणापि दोषै-
र्न ज्ञायसे हरिहरादिभिरप्यपारा।
सर्वाश्रयाखिलमिदं जगदंशभूत-
मत्याकृता हि पमर प्रकृतिस्त्वमाद्या।
यस्याः समस्तसुरता समुदीरणेन
तृप्तिं प्रयात्ति सकलेषु मखेषु देवि।
स्वाहासि वै पितृगणस्य च तृप्तिहेतु-
रूच्चार्यसे त्वमत एवं जनैः स्वधा च।।

विष्णुमाया नामक दुर्गा की स्तुति

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।।
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्रयै नमो नमः।
ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमो नमः।।
कल्याण्यै प्रणतां वृद्धयै सिद्धयै कुर्मो नमो नमः।
नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः।।
दुर्गार्य दुर्गपारार्य सारार्य सर्वकारिण्यै।
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रार्य सततं नमः।।
अतिसौम्यातिरौद्रार्य नतास्तस्यै नमो नमः।
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्याभिधीयते।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता:।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिताः।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु क्षानितरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु कानितरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः।।

दुर्गानामशताष्टकम् नवदुर्गा के 108 नाम

शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती।।
              दुर्गानामशताष्टकम्
ओम् सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी।
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी।।
पिनाकधाधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः।।
सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः।।
शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी।।
अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती।
पट्टाम्बरपरीधाना कलमण्जीररंजिनी।।
अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी।
वनदुर्गा च मातंगी मतंमुनिपूजिता।।
ब्राहमी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा।
चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरूषाकृतिः।।
विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना।।
निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी।
मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी।।
सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी।
सर्वशास्त्रमयी सतया सर्वास्त्रधारिणी तथा।।
अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी।
कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः।।
अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला।।
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी।।
शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रहमवादिनी।।
य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम्।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति।।
धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम्।।

स्वरों के अनुसार पुत्र पैदा होता है

योग्य पुत्र प्राप्त प्राप्ति के लिये
स्त्री को हमेशा पुरूष के बायें तरफ़ सोना चाहिये. कुछ देर बांयी करवट लेटने से दायां स्वर और दाहिनी करवट लेटने से बांया स्वर चालू हो जाता है. इस स्थिति में जब पुरूष का दांया स्वर चलने लगे और स्त्री का बांया स्वर चलने लगे तब संभोग करना चाहिये. इस स्थिति में अगर गर्भादान हो गया तो अवश्य ही पुत्र उत्पन्न होगा. स्वर की जांच के लिये नथुनों पर अंगुली रखकर ज्ञात किया जा सकता है.
योग्य कन्या संतान की प्राप्ति के लिये
 स्त्री को हमेशा पुरूष के दाहिनी और सोना चाहिये. इस स्थिति मे स्त्री का दाहिना स्वर चलने लगेगा और स्त्री के बायीं तरफ़ लेटे पुरूष का बांया स्वर चलने लगेगा. इस स्थिति में अगर गर्भादान होता है तो निश्चित ही सुयोग्य और गुणवती कन्या संतान प्राप्त होगी.

मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम चार दिवसों में संभोग से पुरूष रुग्णता को प्राप्त होता है. पांचवी रात्रि में संभोग से कन्या, छठी रात्रि में पुत्र, सातवी रात्रि में बंध्या पुत्री, आठवीं रात्रि के संभोग से ऐश्वर्यशाली पुत्र, नवी रात्रि में ऐश्वर्यशालिनी पुत्री, दसवीं रात्रि के संभोग से अति श्रेष्ठ पुत्र, ग्यारहवीं रात्रि के संभोग से सुंदर पर संदिग्ध आचरण वाली कन्या, बारहवीं रात्रि से श्रेष्ठ और गुणवान पुत्र, तेरहवी रात्रि में चिंतावर्धक कन्या एवम चौदहवीं रात्रि के संभोग से सदगुणी और बलवान पुत्र की प्राप्ति होती है. पंद्रहवीं रात्रि के संभोग से लक्ष्मी स्वरूपा पुत्री और सोलहवीं रात्रि के संभोग से गर्भाधान होने पर सर्वज्ञ पुत्र संतान की प्राप्ति होती है. इसके बाद की अक्सर
संतान नही होती.
कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
* दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।

* 2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।

* प्राचीन संस्कृत पुस्तक ‘सर्वोदय’ में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।

* यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।

* चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।

* कुछ विशिष्ट पंडितों तथा ज्योतिषियों का कहना है कि सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र तथा दक्षिणायन रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्री जन्म लेती है। उनका यह भी कहना है कि मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं। अतः उस दिन के गर्भाधान से पुत्र होने की संभावना बढ़ जाती है। सोमवार और शुक्रवार कन्या दिन हैं, जो पुत्री पैदा करने में सहायक होते हैं। बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं।
* जापान के सुविख्यात चिकित्सक डॉ. कताज का विश्वास है कि जो औरत गर्भ ठहरने के पहले तथा बाद कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थ तथा औषधि का इस्तेमाल करती है, उसे अक्सर लड़का तथा जो मेग्निशियमयुक्त भोज्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडा आदि का इस्तेमाल करती है, उसे लड़की पैदा होती है।

विश्वविख्यात वैज्ञानिक प्रजनन एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. लेण्डरम बी. शैटल्स ने हजारों अमेरिकन दंपतियों पर प्रयोग कर प्रमाणित कर दिया है कि स्त्री में अंडा निकलने के समय से जितना करीब स्त्री को गर्भधारण कराया जाए, उतनी अधिक पुत्र होने की संभावना बनती है। उनका कहना है कि गर्भधारण के समय यदि स्त्री का योनि मार्ग क्षारीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्र तथा अम्लीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्री होने की संभावना बनती है।
“ॐ नमो भगवते काम-देवाय श्रीं सर्व-जन-प्रियाय सर्व-जन-सम्मोहनाय ज्वल-ज्वल, प्रज्वल-प्रज्वल, हन-हन, वद-वद, तप-तप,सम्मोहय-सम्मोहय, सर्व-जनं मे वशं कुरु-कुरु स्वाहा।”
बंगाल की रानी करे मेहमानी मुंज बनी के कावा पद्मावती बैठ खावे मावा सत्तर सुलेमान ने हनुमान को रोट लगाया हनुमान ने राह संकट हराया तारा देवी आवे घर हात उठाके देवे वर सतगुरु ने सत्य का शब्द सुनाया सुन योगी आसन लगाया किसके आसन किसके जाप जो बोल्यो सत गुरु आप हर की पौड़ी लक्ष्मी की कौड़ी सुलेमान आवे चढ़ घोड़ी आउ आउ पद्मा वती माई करो भलाई न करे तोह गुरु गोरक्ष की दुहाई.