ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षःप्रचोदयात्।

विष्णुप्रिया लक्ष्मी, शिवप्रिया सती से प्रकट हुई कामेक्षा भगवती आदि शक्ति युगल मूर्ति महिमा अपार, दोनों की प्रीति अमर जाने संसार, दुहाई कामाक्षा की, आय बढ़ा व्यय घटा, दया कर माई। ऊँ नमः विष्णुप्रियाय, ऊँ नमः शिवप्रियाय, ऊँ नमः कामाक्षाय ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा
प्रार्थना
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।
“ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
मोहिनी मोहिनी मैं करा मोहिनी मेरा नाम |राजा मोहा प्रजा मोहा मोहा शहर ग्राम ||त्रिंजन बैठी नार मोहा चोंके बैठी को |स्तर बहतर जिस गली मैं जावा सौ मित्र सौ वैरी को ||वाजे मन्त्र फुरे वाचा |देखा महा मोहिनी तेरे इल्म का तमाशा ||

मंत्र विद्या



नियत ध्वनियों के समूह को मंत्र कहते हैं मंत्र वो विज्ञान या विद्या है , जिससे शक्ति का उदभव होता है जहां मंत्र का विधिपूर्वक प्रयोग किया जाता है , वहां शक्तियों का निवास बना रहता है
मंत्र - साधन द्वारा देवी - देवता तक वश में हो जाते हैं और मंत्र - योग की सिद्धि प्राप्त साधक को जगत् का समस्त वैभव सुलभ हो जाता है ( ऐसा माना गया है ) इस भौतिक प्रधान युग में मानव सुख - सुविधा चाहता है और चमत्कार भी किन्तु पाखंडियों ने छल प्रपंच का जाल इस प्रकार फैलाया हुआ है कि केवल अपने साधारण स्वार्थ के लिए एक महान् विद्या के प्रति घृणा अविश्वास पैदा करवा दिया

किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि मंत्रों में शक्ति नहीं है या वे केवल वाग्जाल हैं मंत्र आज भी विद्यमान हैं लेकिन चाहिए सिद्ध महापुरुष की छत्रछाया में साधना करने वाला श्रद्धा , भक्ति विश्वास से की गई साधना कभी निष्फल नहीं होती
मंत्रों से होने वाले लाभ अचानक ही किसी की कृपा से प्राप्त नहीं हो जाते वरन् उनके द्वारा जो वैज्ञानिक प्रक्रिया अपने आप मंत्रवत् होती हैं , उससे लाभ होता है मंत्रों का अपना एक स्वतंत्र विधान है
मंत्र - साधना में सामान्यतः जो विधि अपनाई जाती है , उसकी कुछ मूलभूत क्रियाओं का ध्यान रखता नितांत आवश्यक है , जो निम्न प्रकार से हैं -
स्थान पवित्र , शुद्ध स्वच्छ होना चाहिए , जैसे - देव - स्थान , तीर्थ - भूमि , वन - पद्रेश , पर्वत या उच्च - स्थान , उपासनागृह और पवित्र नदी का तट ! गृह में एकांत , शांत जहां अधिक आवाज पहुंचे , ऐसा स्थान उपासना - गृह रखना चाहिए
प्रभु की प्रतिमा , चित्र या यंत्र को अपने सम्मुख रखना चाहिए
प्रत्येक मंत्र के जाप का समय संख्या निर्धारित होती है , उसी के अनुरुप जप का प्रारंभ करना चाहिए और जितने समय तक जितनी संख्या में जप करना है , उसे विधि - पूर्वक करना चाहिए समय में हेर - फेर कभी नहीं करनी चाहिए
वस्त्र धुला हुआ , स्वच्छ , शुद्ध बिना सिला होना चाहिए
धूप - दीप अवश्य रखना चाहिए
जब तक मंत्र का जप या साधना चले , तब तक अभक्ष्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा नीतिमय जीवन बिताना चाहिए
मंत्रों के शब्दों का उच्चारण शुद्ध बहुत धीमा होना चाहिए सबसे अच्छा है कि '' मानस जप '' करें
मंत्र की उपासना , ध्यान , पूजन और जप श्रद्धा विश्वासपूर्वक करना चाहिए
दिशा , काल , मुद्रा , आसन , वर्ण , पुष्प , माला , मंडल , पल्लव और दीपनादि प्रकार को जानकर ही किसी मंत्र की साधना प्रारंभ की जानी चाहिए
“ॐ नमो भगवते काम-देवाय श्रीं सर्व-जन-प्रियाय सर्व-जन-सम्मोहनाय ज्वल-ज्वल, प्रज्वल-प्रज्वल, हन-हन, वद-वद, तप-तप,सम्मोहय-सम्मोहय, सर्व-जनं मे वशं कुरु-कुरु स्वाहा।”
बंगाल की रानी करे मेहमानी मुंज बनी के कावा पद्मावती बैठ खावे मावा सत्तर सुलेमान ने हनुमान को रोट लगाया हनुमान ने राह संकट हराया तारा देवी आवे घर हात उठाके देवे वर सतगुरु ने सत्य का शब्द सुनाया सुन योगी आसन लगाया किसके आसन किसके जाप जो बोल्यो सत गुरु आप हर की पौड़ी लक्ष्मी की कौड़ी सुलेमान आवे चढ़ घोड़ी आउ आउ पद्मा वती माई करो भलाई न करे तोह गुरु गोरक्ष की दुहाई.